हंसिया को चाँद
या चाँद को हँसिया
कहने से
कविता तो बन जाएगी..... बात न बनेगी...
शब्द फसल से निकल आएँगे आगे
और
पूस की रात में ठिठुरता हल्कू
उन्हीं शब्दों की ओस में मरता रहेगा
दो बाली धान के लिए...
भले हीं
झंडों पर लहलहाएगा धान
लेकिन
हल्कू या होरी के पेट
खोखले हीं रह जाएंगें नारों और दोहों की तरह...
फिर किसी
जबरा की साँसों से लिपट कर सोएगा हल्कू
और हम
उस चौपाये को भैरव बाबा का अवतार कर देंगे घोषित..
पूजे जाएँगे बाबा,
लिखी जाएँगीं कविताएँ..
और नज़रों की 'ठेस' लिए कोने में पड़ा हीं रह जाएगा हमारा नायक......
- Vishwa Deepak Lyricist
2 comments:
मर्मस्पर्शी रचना
kya baat h bhai jaan!
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