एक मर्तबा....
एक मर्तबा,
बस एक दफ़ा,
खुद को जभी तन्हा किया,
खुद को जभी "तन्हा" कहा,
तन्हाई मुझसे आ जुड़ी बातें बनाते खामखा...
एक दफ़ा...
एक दफ़ा एक शर्त थी -
तुम गर्त लो या श्रृंग लो,
भर लो लहू से लेखनी
या फूलों से नर-भृंग लो,
उस घड़ी फूलों को छूकर
देखकर खुशबू औ’ रोगन,
भींच ली मुट्ठी जो मैंने,
लुट गया तितली का यौवन,
तब से काहे पास आए कोई खिलता काफ़िला...
तन्हाई मुझसे आ जुड़ी बातें बनाते खामखा...
"तन्हा" कहा...
"तन्हा" कहा, तन्हा रहा,
जाने कहाँ किसका रहा,
खुल के मिला सबसे मगर,
खुद से बड़ा छुपता रहा..
वैसे तो मेरी लेखनी में
रस था फूलों का भरा,
पर वो भी था तो खून हीं
फिर जमता कैसे मामला,
आखिर पड़ा शब्दों से जो गाहे-ब-गाहे वास्ता,
तन्हाई मुझसे आ जुड़ी बातें बनाते खामखा..
खुद को जभी तन्हा किया,
खुद को जभी "तन्हा" कहा...
एक मर्तबा...
-विश्व दीपक
एक मर्तबा,
बस एक दफ़ा,
खुद को जभी तन्हा किया,
खुद को जभी "तन्हा" कहा,
तन्हाई मुझसे आ जुड़ी बातें बनाते खामखा...
एक दफ़ा...
एक दफ़ा एक शर्त थी -
तुम गर्त लो या श्रृंग लो,
भर लो लहू से लेखनी
या फूलों से नर-भृंग लो,
उस घड़ी फूलों को छूकर
देखकर खुशबू औ’ रोगन,
भींच ली मुट्ठी जो मैंने,
लुट गया तितली का यौवन,
तब से काहे पास आए कोई खिलता काफ़िला...
तन्हाई मुझसे आ जुड़ी बातें बनाते खामखा...
"तन्हा" कहा...
"तन्हा" कहा, तन्हा रहा,
जाने कहाँ किसका रहा,
खुल के मिला सबसे मगर,
खुद से बड़ा छुपता रहा..
वैसे तो मेरी लेखनी में
रस था फूलों का भरा,
पर वो भी था तो खून हीं
फिर जमता कैसे मामला,
आखिर पड़ा शब्दों से जो गाहे-ब-गाहे वास्ता,
तन्हाई मुझसे आ जुड़ी बातें बनाते खामखा..
खुद को जभी तन्हा किया,
खुद को जभी "तन्हा" कहा...
एक मर्तबा...
-विश्व दीपक
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