कभी आँख की शक्ल में आओ
और
झाँक लो मेरे अंदर...
दिन के बारूद से लिपटे
रात के चिथड़े मिलेंगे..
ज़ख्मी दिल वहीं पड़ा मिलेगा
कोने में
और
रूह का कहीं नामो-निशान न होगा..
तुम्हें इंसान चाहिए था ना?
जिस्म हाज़िर है..ले जाओ!!
-विश्व दीपक
और
झाँक लो मेरे अंदर...
दिन के बारूद से लिपटे
रात के चिथड़े मिलेंगे..
ज़ख्मी दिल वहीं पड़ा मिलेगा
कोने में
और
रूह का कहीं नामो-निशान न होगा..
तुम्हें इंसान चाहिए था ना?
जिस्म हाज़िर है..ले जाओ!!
-विश्व दीपक
1 comment:
इतने दिनों की खामोशी के बाद बहुत विस्फोटक पारी खेली है दीपक जी! क्या खूब चौके-छक्के लगाए हैं!!
गज़ब!
Post a Comment