Wednesday, July 05, 2023

तुम.. मेरी बेटी

तुम्हारी हथेली की लकीरों पर मैंने अपने अस्तित्व के बीज़ छोड़ रखे हैं. तुम्हारी हँसी एक कुएँ में घुली चाशनी है. हर सुबह उतरता धुँधलका तुम्हारी आँखों की चिड़ियों की जोहता है बाट.

लिखूँगा

गीतों में, गज़लों में एक चहारदीवारी है। मैं तुम्हारे प्रेम को लिखूँगा एक अकविता में। . असमझा एक विषय, अनुपजा एक ख्याल, या फिर अनलिखी एक कविता - प्रेम यही है। . क्या हीं लिखूँगा! . बस महसूसूँगा।