Sunday, April 18, 2021
द्वंद्व
कलम सोच रही है - कुछ कहूँ। पन्ने मुँह फुलाए हुए हैं- विचारों की चोट इन्हें बर्दाश्त नहीं। यह नया द्वंद्व है। कवि पहले यहाँ संभले तो उलझे समाज से।
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Vishwa Deepak
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