Tuesday, February 14, 2012

एक साल पहले


एक साल पहले बोया था जिसे, 

आज उस पेड़ की शाखें बउरा गई हैं, 
बिरवे आए हैं उनपे.. 


बियाबान में तुमने जल का सोता डाला था तब, 
उसी की बदौलत 
आज देखो यह पेड़ खींच लाया है बारिशों को.. 


पतझड़ की बुनकरी चलती रहे भले हीं, 
यह बहार जाने न ना पाए, 
यह बहार बनी रहे.... यूँ हीं..  



2 comments:

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|

SKT said...

आप कविता का सोता यूं ही बहाते रहोगे तो आनंद की बारिशें होती रहेंगी!! क्या खूब कहा है, दीपक जी!