Wednesday, February 01, 2012

भीनी शब



भीनी शब, भीने दिन 
साँसों साँसों बहते गुंचे.. 
झीनी शब, झीने दिन 
साँसों के दो परदे.. 


भीनी शब, भीने दिन 
साँसों साँसों बहते गुंचे.. 
झीनी शब, झीने दिन 
साँसों के दो परदे.. 


ऐसे में मैं जानूँ 
दिल हो ले दो-जानू 
शब की जो गर मानूँ 
सब परदे उधड़े.. 


पलकें तू हीं कह री!
सीधी इतनी ठहरी, 
उनके लब जा उतरी, 
फिर कैसे... किस रस्ते.. 


हाँ री हाँ मैं जानूँ 
दिल हो ले दो-जानू 
शब की जो गर मानूँ 
सब सजदे सुधरे.. 


लट से लिपटी बाहें, 
बाहों में सौ आहें, 
आहों में दस राहें 
जिनपे उनसे उनतक मैं.. 


मुझपे उनका कुहरा, 
चेहरे पे उनका चेहरा, 
सीने में कुछ गहरा 
धंस ले, बिखरूँ जुड़कर मैं.. 


भीनी शब, भीने दिन 
साँसों साँसों बहते गुंचे.. 
झीनी शब, झीने दिन 
साँसों के दो परदे.. 


छूटा बचपन, 
रूठा बचपन, 
अपना बनके उनने रग-रग 
लूटा बचपन.. 


लफ़्ज़ों के कुछ 
दे के जेवर सिक्के, 
तिल से तह तक 
पैठे ठग के छिप के.. 


एक से दो जब हो लें तो फिर बरसूँ उनपे.. 


उलझे 
हुए थे मुझसे वो 
बेलें पीपल पे सिकुड़ी हों ज्यों.. 


उभरे 
हुए थे अरमां यों 
झीलें बादल पे उमड़ी हों ज्यों.. 


आना-कानी 
उफ़्फ़ खींचा-तानी 
बूंदा-बांदी में उनींदे थे हम दोनों.. 


बेदम बेहिस थे हम, 
ऐसे में ले अनबन, 
सुबह बनके सौतन 
आ बैठी फिर से.. 


भीनी शब, भीने दिन 
साँसों साँसों बहते गुंचे.. 
झीनी शब, झीने दिन 
साँसों के दो परदे..

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