Saturday, October 16, 2010

दुनिया तो अक्कड़-बक्कड़ है


ये दुनिया लाल-बुझक्कड़ है,
यहाँ डेग-डेग पे चक्कर है,
बोली में सौ मन नीम भरा,
लल्लो-चप्पो में शक्कर है..

तुम भी तो कुछ पासे फेंको,
शेखी बघार लो.. टक्कर है,
या फूंक डालो घर अपना हीं,
सब कहेंगे दुखिया, फक्कड़ है..

अरे बचो, देह न तोड़ दे ये
सच जानलेवा है, झक्कड़ है,
क्यों इसे सुधारने बैठे हो,
दुनिया तो अक्कड़-बक्कड़ है...


-विश्व दीपक

1 comment:

दिपाली "आब" said...

outstanding... kya baat kahi hai,poori kavita bahut shaandaar hai.
word verification hata lijiye