Tuesday, January 26, 2010
इश्क़ आग है..
इश्क़ आग है,
जहर-बुझे नज़रों से घायल
आशिक के साँसों का झाग है..
बड़ी बेरहम इसकी लत है,
परचम-परचम हर कोने में,
मौत की मानो, जीत नियत है..
इस शरीर-से इश्क़ की जबसे
दिल-दरवेश से हुई सोहबत है,
भूल गया दिल खुदा-खुदाई,
धड़कन में भी बस गफ़लत है,
माँगता था जो दुआ जान की
अब दूजे से हीं निस्बत है,
दर-दर उसका नाम पुकारे,
हर नुक्कड़ की यह तोहमत है,
खून भरे यह रगों में जब भी
ख्वाब धरे, बोले बरकत है,
जान पड़ी आफत में अब तो
हुई बेहया हर हरकत है,
छोड़ न दे जां हाड़-माँस को
चार-पाँच पल की मोहलत है,
बड़ी बेरहम इसकी लत है....
भाँग-भरे फ़ागुन में पागल
बेवा के होठों का फ़ाग है,
इश्क़ आग है!!
-विश्व दीपक
Friday, January 22, 2010
चाक जिगर (बेरहम वक्त)
male:
बेरहम वक्त जो टुकड़ों में तेरी याद की चिट्ठी देता है,
यूँ लगता है कातिल मेरा मेरी लाश पे मिट्टी देता है।
मैं चिट्ठी ना पढ पाता हूँ,
बस हर्फ़ों में गड़ जाता हूँ,
लफ़्ज़ों के सूखे शाख से मैं
तेरा नाम तोड़कर लाता हूँ,
तेरे नाम से फिर मैं जानेमन तेरा चेहरा बुन लेता हूँ,
रूख्सार पे फैले अश्कों से मैं चाक जिगर सुन लेता हूँ।
female:
बेरहम रात जो कुछ पल को तुझे मेरे ख्वाब में लाती है,
यूँ लगता है मेरी मौत यहाँ मुझको जीना सिखलाती है।
मैं जीकर भी कहाँ जिंदा हूँ,
इन साँसों पे शर्मिंदा हूँ,
फुरकत की कालकोठरी में
मैं बरसों से बाशिंदा हूँ।
मैं तो हिज्र की चारदीवारी पे तेरा चेहरा जड़ लेती हूँ,
रूख्सार पे फैले अश्कों से मैं माँग मेरा भर लेती हूँ।
male:
मैं दर्द का बस आदमकद हूँ,
ज़ख्मों से सना हुआ ज़द हूँ,
बदकिस्मत हूँ इस हद तक कि
हर बरबादी की मैं हद हूँ,
अंदर तक छिला हूँ ऐसे कि
जैसे मैं गमों का बरगद हूँ,
मैं दर्द का बस आदमकद हूँ....
female:
मैं तो जलती हूँ सहराओं में,
गम की इन गर्म हवाओं में,
ना बूँद वस्ल की दिखी मुझे
अंबर पे बिछी घटाओं में,
ना सब्र हीं बनके मिला मुझे,
क्यों एक भी लाख खुदाओं में?
मैं तो जलती हूँ सहराओं में.....
male:
बेरहम वक्त जो टुकड़ों में तेरी याद की चिट्ठी देता है,
यूँ लगता है कातिल मेरा मेरी लाश पे मिट्टी देता है।
female:
बेरहम रात जो कुछ पल को तुझे मेरे ख्वाब में लाती है,
यूँ लगता है मेरी मौत यहाँ मुझको जीना सिखलाती है।
-विश्व दीपक
Subscribe to:
Posts (Atom)