Tuesday, January 26, 2010
इश्क़ आग है..
इश्क़ आग है,
जहर-बुझे नज़रों से घायल
आशिक के साँसों का झाग है..
बड़ी बेरहम इसकी लत है,
परचम-परचम हर कोने में,
मौत की मानो, जीत नियत है..
इस शरीर-से इश्क़ की जबसे
दिल-दरवेश से हुई सोहबत है,
भूल गया दिल खुदा-खुदाई,
धड़कन में भी बस गफ़लत है,
माँगता था जो दुआ जान की
अब दूजे से हीं निस्बत है,
दर-दर उसका नाम पुकारे,
हर नुक्कड़ की यह तोहमत है,
खून भरे यह रगों में जब भी
ख्वाब धरे, बोले बरकत है,
जान पड़ी आफत में अब तो
हुई बेहया हर हरकत है,
छोड़ न दे जां हाड़-माँस को
चार-पाँच पल की मोहलत है,
बड़ी बेरहम इसकी लत है....
भाँग-भरे फ़ागुन में पागल
बेवा के होठों का फ़ाग है,
इश्क़ आग है!!
-विश्व दीपक
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