मिन्नतें बाजार में बाजार से करते रहे,
मोल अपनी रूह का बेज़ार-से करते रहे।
शुक्र है कि जिंदगी रास्ते आई नहीं,
रास्तों का सर कलम लाचार-से करते रहे।
बेच ना डाले कहीं सारे हीं आसमान,
पीछा अपने आप का रफ्तार से करते रहे।
मौजज़न साँसें सभी ना समाये देह में,
शिकवा अपने भाग्य का मझधार से करते रहे।
जाना, हमने पाई जो काफ़िरों की बेरूखी,
अपने होने का गुरूर बेकार-से करते रहे।
काफिला-दर-काफिला जागती रेत को
जख्मी सब दर्दे-निहाँ दो धार से करते रहे।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
5 comments:
आपकी इन पक्तियों की जितनी भी प्रशंशा की जाये कम होगा। बहुत बहुत बधाई
badhiyaa likhne lage ho sirjee :-)
subah subah DIL khushh karr diye aap .......
Dono jhakkas hai.... :D
Welcome back , tanha bhai
:)
शुक्र है कि जिंदगी रास्ते आई नहीं,
रास्तों का सर कलम लाचार-से करते रहे।
tanhaji aapki rachnao me din-b-din nikhar aata ja raha hai...bahut bahut badhai!!!
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