जब तलक हम बेजान थे,
इन रिश्तों के आन-बान थे।
साँस लूँगा तो धड़केगा दिल,
यही सोच ,हम हलकान थे।
रात भर जिस्म तला जिनने,
अपने थे, पिता-समान थे ।
गम कमजोर ना रहा मेरा,
तुम सभी जो कद्रदान थे।
'अति' बुरी है क्यूँकर जबकि,
पिटे वही जो बेजुबान थे।
बेवा,बच्चे हैं भूखे उनके,
इस देश पर जो कुर्बान थे।
आँखें चुभी तो जाना हमने,
अश्क-से सभी इंसान थे।
मंच सजते हैं,जहाँ पहले,
गालिब के नामो-निशान थे।
अब तन्हाई भी नहीं अपनी,
इस ज़फा से हम अंजान थे।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
1 comment:
wah lajawab
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