पत्थर का खुदा,पत्थर का जहां,पत्थर का सनम भी देख लिया,
लो आज तुम्हारी महफिल में तेरा यह सितम भी देख लिया ।
तुम लाख हीं मुझसे कहती रहो,यह इश्क नहीं ऎसे होता,
जीता कोई कैसे मर-मर के,मैने यह भरम भी देख लिया।
इस बार जो मेरी बातों को बचपन का कोई मज़ाक कहा,
है शुक्र कि मैने आज के आज तेरा यह अहम भी देख लिया।
कहते हैं खुदा कुछ सोचकर हीं यह जहां हवाले करता है,
यह ज़फा हीं उसकी सोच थी तो मैने ये जनम भी देख लिया।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
3 comments:
पत्थर का खुदा,पत्थर का जहां,पत्थर का सनम भी देख लिया,
लो आज तुम्हारी महफिल में तेरा यह सितम भी देख लिया!
Hi Visha, achhi sher hai! Patthar ke jahan mein phool bhi milte hein. hai na..!
Sorry type mistake, its 'Vishva'
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