Thursday, April 24, 2008

दो गाने

गाना -१

मुखड़ा

इस बार,
मेरे सरकार!
चलो तुम जिधर,
चलूँ मैं यार !

इस बार.....
नज़रों के वार......
आर या पार।

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अंतरा 1

तुम न जानो, इस शहर में, कोई भी तुम-सी नहीं,
बोलकर सब, चुप रहे जो, ऎसी कोई गुम-सी नहीं।
हावड़ा ब्रिज के, नीचे बहता, पानी-सा है बदन तेरा,
चाल क्या है, तिरछी लहरें, बाजे रूनझून-सी कहीं।

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मैं बेकरार....

इस बार...
नज़रों के वार..
आर या पार।

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अंतरा 2

जो कहे तू, तेरी खातिर, सारी दुनिया छोड़ दूँ हीं,
घर करूँ मै, तेरे दिल में, मेरे घर को तोड़ दूँ हीं।
प्यार क्या है, प्यार से जो, सुने मेरी बात को तू,
अपने दिल में, दिल से मेरे, जानू तुमको जोड़ दूँ हीं।

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सुन दिलदार....

इस बार...
नज़रों के वार...
आर या पार...।

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मेरे सरकार...
तेरे दरबार....
चलो तुम जिधर..
चलूँ मैं यार....

इस बार...
आर या पार।

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गाना -२

मुखड़ा
ऎ सखी, तुई मिष्ठी , सोत्ती रे,
स्वाती में सीपी का तू हीं मोती रे.

रे सोनपरी, सोनजुही तु संजोती रे,
बोल्लाम...
एक नाम, तू हीं तू...हो जी रे...।

सोत्ती रे...सोत्ती रे...
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अंतरा 1

मांझी अंखियाँ तुम्हारी, दरिया बदन है,
छलिया मुस्कान उस पर,पतवार मन है,
अगन-सी आँहें गज़ब की, सोंधा जोबन है,
बोली में रूनझून-रूनझून, तेरा टशन है।

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हूँ....हूँ...हूँ....हूँ....

कमानी लबों की....आय-हाय जोती रे,
बोल्लाम...
एक नाम....तू हीं तू.....सोत्ती रे।

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अंतरा 2

कह दूँ यूँकर सनम ,बातें जिया की,
हौले- हौले लिखूँ मैं, गज़ल अदा की,
तेरा हीं होकर जी, बनूँ दिल-निवासी,
बोलबो आमि, सोना, तुमाके भालो बासी।

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सोत्ती रे.....

हूँ...हूँ...हूँ...हूँ....

रे सोनपरी, सोनजुही तु संजोती रे,
स्वाती में सीपी का तू हीं मोती रे।

ऎ सखी , तुई मिष्ठी , सोत्ती रे,
बोल्लाम...
एक नाम, तू हीं तू...हो जी रे...।

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-विश्व दीपक ’तन्हा’

1 comment:

Infinite Thoughts said...

जो कहे तू, तेरी खातिर, सारी दुनिया छोड़ दूँ हीं,
घर करूँ मै, तेरे दिल में, मेरे घर को तोड़ दूँ हीं।
प्यार क्या है, प्यार से जो, सुने मेरी बात को तू,
अपने दिल में, दिल से मेरे, जानू तुमको जोड़ दूँ हीं।

rachana ke ye line kaafi ache lage... :)