मैं तुझमें अपना होना देखूं,
तेरी गोद में रोज़ बिछौना देखूं।
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तेरी हँसी में देखूं चित्रहार,
मेरे जीवन का सारा विस्तार,
तेरे नाम से जोड़ के नाम मेरा,
मैं रख दूं तुझमें अपना संसार।
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संसार की सारी समस्याओं
का खोना, जादू-टोना देखूं।
तेरी गोद में रोज़ बिछौना देखूं।
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मैं बेमकसद बहती एक नदी,
न अर्थ, न लक्ष्य, न पाबंदी,
एक दिन सब बदला एक क्षण में
जब प्राप्त हुई मुझे 'सुकृति'।
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उस क्षण से सदी की करवट का
करतब मैं कोना-कोना देखूं।
तेरी गोद में रोज़ बिछौना देखूं।
Tuesday, November 03, 2020
मृत्यु की बिकवाली
ऐसी क्या कंगाली है?
मृत्यु की बिकवाली है।
जिसके घर का लाल गया,
वह भी क्यों बेहाल हुआ?
TRP के पागल-हाथों में
घुट-घुटकर बदहाल हुआ।
वह था कई नज़रों का दीपक,
पढा लिखा बेजोड़ विचारक,
इतना घिसा गया उसके जाने को
....यादों पर चढ़ बैठे दीमक।
NASA छुपा, नशा खुल गया,
Moon ऊपर अवगुण ढुल गया,
नीत्शे और सात्र बिला गए,
Split से दर्शनशास्र धुल गया।
हासिल क्या हीं हुआ पिता को?
मौत सही , बदनामी सहो।
'अनर्गल' मीडिया के लिए तो
यह रोज़ की कव्वाली है,
मृत्यु की बिकवाली है।
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