मैं परसो तक तुम्हारा था,
आज?
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तुम हारे हो,
मैं नहीं।
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सच घोड़े के तलवों में ठुकी
काली नाल है,
रुकना, चलना, मुड़ना - सब भारी!
सच उस्तरा है
दो-धारी!!!
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निरपेक्ष सच
नहीं सरकता गले के नीचे. .
पर
सच सापेक्ष भी तो नहीं होता..
absolute entity है ये.…
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निष्पक्ष सच?
सच का पक्ष क्या?
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तुम्हारे सच का पक्ष है,
वह पिछले झूठों से थोड़ा कम झूठा है..
आज की रात कल की रात से कम काली है,
इसे सुबह कहें?
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यह कातिल सर नहीं काटता,
नस काटता है...
यह तुम्हारा देवता है।
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यह देवता
यह सच
तुम्हें मुबारक।
तुम हारे हो,
मैं नहीं......
- Vishwa Deepak Lyricist
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