मैं तरल हूँ!
मुझे टुकड़ों में बाँटो
और पी जाओ..
मैं चुभूंगा नहीं..
बस खुली रखना
अपनी सिकुड़ी नलिकाएँ..
उतरूँगा शाखाओं में
मैं
और तुम्हें
कर दूँगा ठोस..
मैं सरल हूँ!!
मुझे प्रिय हैं
खंडहरों की नींवें
और तुम्हारा चढता-उतरता व्यक्तित्व...
- Vishwa Deepak Lyricist
3 comments:
love it .. Manmohak :)
बहुत खूब ...
बहुत बढ़िया भाव
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