Tuesday, May 18, 2010
तेरे भरोसे
मुझे कहाँ जीने का हुनर है!
तेरे भरोसे मेरा बसर है।
तू हीं बता दे संभालूँ कैसे,
तुझी पे अटकी मेरी नज़र है।
तेरे अलावे भी एक जहां है,
जिसे पता हो, कहे किधर है?
तुझे न देखूँ तो कुछ करूँ भी,
तुझे न देखूँ.. यही दुभर है।
मुझे अगर है गुमां तो ये भी,
तेरी अदाओं का हीं असर है।
तू हीं वज़ह है दीवानेपन की,
बुरा तो ये कि तुझे खबर है।
इसे हक़ीक़त कहूँ या धोखा,
मेरे लबों पर तेरी मुहर है।
कोई गनीमत थी जो कि आखिर
तेरे हवाले हीं मेरा सर है।
मुझे गंवा के ना रह सकोगी,
मेरे बिना तो सफर सिफर है।
मुझे न ’तन्हा’ समझना क्योंकि
चाहे न चाहे तू हमसफर है।
-विश्व दीपक
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1 comment:
उम्दा ख़याल!
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