Saturday, May 22, 2010
मोसे मान करे है मन मोरा..
मोसे मान करे है मन मोरा!!
दिन-संझा गुजरे फिर जब हीं
कजरारी रैन फ़फ़क जाए,
तोसे लजा-लजा के चंदा तब
अंबर पे उचक-उचक जाए,
देह बचा-बचा बिजली कड़के
तू तके जो आग धधक जाए,
भय खाए कोई, शरमाए कोई
कोई सामने आके छक जाए,
ऐसे में निगोड़ी प्रीत तभी
मोहे देके तोरी ललक जाए..
अब का करिए जब तोपे हीं
अंखियन की आस अटक जाए
अब का करिए जब मन मोरा
तोहे निरख-निरख के थक जाए..
मैं तरह-तरह के करूँ जतन
ताकि तोरा जियरा धड़क जाए,
न्योछार करूँ मैं लाख जनम
तबहुँ न तोरी झिझक जाए.....
हाय! अब और करूँ भी क्या?
अंसुवन के संग धरूँ भी क्या?
निर्मोही तू! तोहे का फिकर
मैं मन मारूँ या मरूँ भी क्या?
एक बात है मन में कचोट रही,
कि तोरे हीं मन में थी खोट रही,
फिर मैं काहे मर जाऊँ भला,
जब गलती तोरे माथे लोट रही..
सो मन के मोम जलाए दियो
मैंने इशक के होम जलाए दियो,
नैनन में बसी तोरी मूरत के
मैंने एक-एक रोम जलाए दियो..
अब ये क्या! कैसा नया किस्सा,
मोरा मन माँगे मोसे हिस्सा,
मुआ.. अब भी तोरा ध्यान करे,
मोरा मन...... मोसे हीं मान करे!!
मोरा मन...... मोसे हीं मान करे!!
मोसे मान करे है मन मोरा,
तोहे मानत है, मोसे बिफरत है,
हाय! बावरा है.... थोड़ा-थोड़ा!!
-विश्व दीपक
Tuesday, May 18, 2010
तेरे भरोसे
मुझे कहाँ जीने का हुनर है!
तेरे भरोसे मेरा बसर है।
तू हीं बता दे संभालूँ कैसे,
तुझी पे अटकी मेरी नज़र है।
तेरे अलावे भी एक जहां है,
जिसे पता हो, कहे किधर है?
तुझे न देखूँ तो कुछ करूँ भी,
तुझे न देखूँ.. यही दुभर है।
मुझे अगर है गुमां तो ये भी,
तेरी अदाओं का हीं असर है।
तू हीं वज़ह है दीवानेपन की,
बुरा तो ये कि तुझे खबर है।
इसे हक़ीक़त कहूँ या धोखा,
मेरे लबों पर तेरी मुहर है।
कोई गनीमत थी जो कि आखिर
तेरे हवाले हीं मेरा सर है।
मुझे गंवा के ना रह सकोगी,
मेरे बिना तो सफर सिफर है।
मुझे न ’तन्हा’ समझना क्योंकि
चाहे न चाहे तू हमसफर है।
-विश्व दीपक
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