Wednesday, November 04, 2009

है नशा....

कहें इसको इश्क या,
खलल, जादू, बद्दुआ,
जाने मुझको क्या हुआ,
है नशा!!

यह रूत, ये वादियाँ,
कहती यह अनकहा,
मेरे दिल का आईना,
बावफ़ा!!

कुछ हैं गिरी,कुछ खो गईं, हुई मोम सी,मेरी दास्तां,
मेरा जो हाल, बदहाल है, कह दूँ इसे, इश्क क्या?

जाने मुझको क्या हुआ,
क्यूँ हूँ मैं गुमशुदा,
दिल का ये फलसफा,
ना पता!!!

हाँ तो, कैसे, बेगानों में घुल-मिल रह लूँ,
घुट के, बोलो, मझधार को साहिल कह लूँ?
रहबर, आँखें, जिसे कह दे मंजिल ,बह लूँ,
ना हो, हाँ हो, दोनों का हासिल सह लूँ।

बस मुझसे , तू कुछ कहे...

मेरे रब की ये अदा,
है रब-सी बाखुदा,
हर पल हीं जो रहा,
बेजुबां!!

देखो, आहिस्ता,दिल मेरे दिल ये लगाना,
रौनक, दुनिया की, धोखा है धोखा न खाना,
करवट, करवट, ख्वाबों का घर न सजाना,
पर हाँ, जानो कि,वो आयें, जरा शर्माना,

कभी मुझसे, वो कुछ कहे...

दिलवर जो हो जुदा,
महुए का भी नशा,
बन जाए नीम-सा,
बेमजा!!

ओ आसमां, पलकें बिछा, जिसको कहे तू , हमनवा,
चुपचाप हीं, रजनी तले, क्या कभी हुआ, मेहरबां?

मेरे दिल की है सदा,
उनको भी कुछ हुआ,
है यह सारा मामला,
इश्किआ!!!


-विश्व दीपक

2 comments:

Randhir Singh Suman said...

मेरे दिल की है सदा,
उनको भी कुछ हुआ,
है यह सारा मामला,nice

Asha Joglekar said...

सुंदर कविता । आपको प्रतिसाद मिला ये खुशी है ।