अंतिम वर्ष का छात्र हूँ। इसलिए अपने संस्थान ( I.I.T. kharagpur) एवं अपने छात्रावास से विदा लेना , नियति हीं है। इसी अवसर पर अपने दिल के कुछ उद्गार प्रस्तुत कर रहा हूँ।
सच कहूँ तो आँखें नम हैं!
खिड़की, दरवाजों पर पड़े
इसकी यादों के जाले
संग लिए,
गलियारे में आते-जाते
दिन के उजाले का
रंग लिए,
टैरेस के पीपल-नीचे
जगे सपनों के निराले
ढंग लिए,
कई सौ साँसों में सालों
इसने जो पाले वो
उमंग, लिए,
चल दिया दूर-
मैं बदस्तूर !
क्या कहूँ मैं?
अब इस दिल ने
संजोए कई सारे हीं गम हैं!
सच कहूँ तो आँखें नम हैं !!
सच कहूँ तो आँखें नम हैं!
बेलाग दिया जो हमको
हँसी-खुशी के कई उन
खातों को,
फूलों की बू-सी कोमल
दरो-दीवार की रूनझून
बातों को,
सब्ज-लाँन कभी धूल
और यारों की गुमसुम
रातों को,
बेबात युद्ध फिर संधि,
ऐसे अनगढे खून के
नातों को,
कर याद रोऊँ,
इन्हें कहाँ खोऊँ?
क्या कहूँ मैं?
रेशम-से वो पल हीं
नई राह में मेरे हमदम है!
सच कहूँ तो आँखें नम हैं!!!
-विश्व दीपक ’तन्हा’
५-०३-२००८
5 comments:
मेरी भी आँखें नम कर दीं तुमने...
kya VD bhai...itni jaldi aankhe nam kar de aapne ...we kgpians r going 2 miss u a lot....
मेरी भावनाए भी आपके जैसी ही हैं!! :((
बहुत ही भावुक कविता लिखी है आपने दीपक ..मैंने इसको अपने संग्रह में सेव कर लिया है ..बहुत पसंद आई मुझे यह सच में जुदा होने के क्षण कुछ ऐसे ही उदास कर देने वाले होते हैं ..दिल को छू गई आपकी यह रचना
bahut bahut achchhi aur sachchhi kavita hai ye .. sach to yahi ki aankhe to humari bhi nam hain ..
es bache samay ko kahin
sajon lun main
ankhon main na sahi
yadon mei sajon lun main
abhi to ek nazar bhar ke
nazara dekha bhi nahi
logo ka kahate hain
ki abhi tak gaye nahi
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