चाँद के चकले पर लबों की बेलन डाले,
बेलते नूर हैं हमे, सेकने को उजाले ।
उफ़क को घोंटकर
सिंदुर
पोर-पोर में
सी रखा है!
धोकर धूप को,
तलकर
हाय!
अधर ने तेरे चखा है!!
फलक को चूमकर
तारे
गढे हैं
तेरे ओठों ने!
हजारों आयतें,
रूबाईयाँ
आह!
इन लबों ने लखा है!!
सूरज को पीसकर,दिए इनको निवाले,
बेलते नूर हैं हम, सेकने को उजाले ।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
2 comments:
bahut badhiya:),chand ka chakla aur labon ke belan.
तन्हा जी आपकी असाधारण प्रतिभा के दर्शन हो रहे हैं ... अद्भुत ... क्या खूब लिखा है.. ऐसी कल्पना की उड़ान तो बड़े बड़े कवि भी नही भर पाते...
आपकी लेखनी मिल जाए तो मैं चुरा लूँ ... बस ऐसे ही लिखते रहिए..
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