तन्हा था ,
तो वक्त ने तुमसे मिलवा दिया,
तुमने प्यार दिया
तो
मैं भूल गया कि
विकलाँग है मेरा शरीर।
अब दया दी है तुमने,
देखो मेरी रूह भी विकलांग हो गई है।
तुम्हारी कोई गलती नहीं है,
तुमसे क्यों कुछ कहूँ,
बस वक्त से नाराजगी है,
उसी को सजा दूँगा।
_________________________
(३)
वह बरगद-
जवां था जब,
कई राहगीर थे उसकी छांव में,
वक्त भी वहीं साँस लेता था,
फिर बरगद बुढा हुआ,
राहगीरों ने
उससे उसकी छांव छीन ली,
अब कई घर हैं वहाँ,
वक्त अब उन घरों में जीता है,
सच हीं कहते हैं -
वक्त हमेशा एक-सा नहीं होता।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
12 comments:
वाह क्या कविता लिखी है तन्हा जी ने! बोले तो एकदम झक्कास..
ye waqt ka main kaisa sun raha hoon rona ....
is kavi ne pareshaan kiye waqt ka bhi jeena....
jo nirbal samajhkar neekal daale uske 3 pratiroop
chorega nahi jab tak chin na jaye inki bhi chao
वक्त से नाराज़गी अच्छी नहीं तन्हाजी :)
जैसा की आपने (३) में कहा है कि "वक्त हमेशा एक-सा नहीं होता।", बस यही सत्य है।
बधाई स्वीकार करें।
i really liked part 3... :)
वाह तनहा जी क्षणिकायें बहुत अच्छी बन पडी हैं। विशेषकर ये पंक्तियाँ:
वक्त भी वहीं साँस लेता था,
फिर बरगद बुढा हुआ,
राहगीरों ने
उससे उसकी छांव छीन ली,
अब कई घर हैं वहाँ,
वक्त अब उन घरों में जीता है,
सच हीं कहते हैं -
वक्त हमेशा एक-सा नहीं होता।
*** राजीव रंजन प्रसाद
Last one was too gud :)
वक़्त भाग -2 एवं भाग -3 एकदम अलग ही प्रसंग उपस्थित कर रहे है |
भाग-2 में जहाँ प्रेमिका के मन और वक़्त की रफ़्तार के मध्य एक वक्र खींचा गया है , वहीं
भाग-3 में वक़्त और आम आदमी की रफ़्तार टटोली गयी है ....
कुल मिलाकर यहीं कह सकता हूँ कि ...
चाँद पंक्तियाँ में सारा बाव और संसार कि मनोवरतियाँ उजागर हो गयी है ...
Really very nice , in my view your best, simple but really very very meaningful why don't u send these is any magazines
bahut zabardst kavita hai , award winning
sadhu wad
waqt ke har bhav ko ek kavita se uddgaar karna,
must wud hav been tough but iz very interesting...
तन्हा जी,
यह जो बरगद वाली क्षणिका है न, इससे बढ़िया क्षणिका मैंने आज तक नहीं पढ़ी। आप तो इस फ़न के भी उस्ताद हैं।
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