"पृष्ठ पीठ नहीं दीखाते,
शब्द बंजर नहीं होते,
कविताएँ झूठी नहीं होती,
कवि कठोर नहीं होता"-
कब तक संजोती रहूँ मैं
तुम्हारे इतने सारे सच।
हाँ यकीन था मुझे,
अब भी याद है-
वो तुम्हारा पहला
प्रेमपत्र-
"इन दिनों न सोचा मैं खुद भी जुदा,
आप को हीं है चाहा, है समझा खुदा।"
तुम्हारा इकरार,
तुम्हारा आग्रह-
"आज रूक जाइए, कल चले जाइएगा,
हमें यूँ तड़पाकर क्या पाइएगा ।"
मेरा समर्पण
और तुम्हारे सपनों का
आसमानी होना-
"सजधज वो आई घर मेरे,
अब नभ तुम हीं अगुवाई करो।"
अब तक संभाल रखे हैं
मैंने
अपने सीने पर
तुम्हारे सारे शब्द।
लेकिन वक्त के दीमक-
जो तुमने हीं दिये हैं,
निगल रहे हैं,जब्त कर रहे हैं,
मेरे यकीं को,
तुम्हारे शब्दों को।
सच कहूँ-
तुम्हे पता है शायद कि
लिखना भारी काम नहीं,
उनपर अमल करना,
शब्दों को जीना-
कई जन्मों से भारी है।
इसलिए
अपनी कविताओं में,
शब्दों के बहाने,
दो क्षण में
दस जिंदगी जीते हो तुम।
-लेकिन-
तुम्हें पता नहीं कि
जो जीवित है,
तुम्हारे हीं कुछ शब्दों के भरोसे,
उसकी जिंदगी के
कई पृष्ठ उसर हैं
और "शायद"
तुम्हारी भी..............।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
8 comments:
तन्हाजी,
सचमुच शब्दों पर अमल करना मुश्किल कार्य है, आपने ठीक ही कहा है -
लिखना भारी काम नहीं,
उनपर अमल करना,
शब्दों को जीना-
कई जन्मों से भारी है।
बहुत ही सरलता से आपने एक सत्य को स्वरूप दिया है, बधाई स्वीकार करे।
आपके शब्दों की गहराई से.. कविता की गहराई से...
मुझ अबूझ को इतना ही पता चला ..
प्रेमिका ..कवि प्रेमी के शब्दों में...
ज़िंदगी गुज़ार देती है शब्दों कि पालना में ..........
..
तुम्हे पता है शायद कि
लिखना भारी काम नहीं,
उनपर अमल करना,
शब्दों को जीना-
कई जन्मों से भारी है।
...
आपकी लेखनी से निकले इस नये उदगार से मनन-चित्त तर हो गया...
keep going..
maine pehle bhi kaha tha, aaj bhi ek hi baat kehna chahoonga... aap ki kavita, pata nehi kyun, pata nehi kaise, mujhe aapni jindagi se joori hui lagti hai.. jaise aap aapni kavitaon mein meri hi baat keh rahe ho.. (gustakhi maaf)..
ye kuchh lines mujhe chhoo gaye
अपनी कविताओं में,
शब्दों के बहाने,
दो क्षण में
दस जिंदगी जीते हो तुम।
.............
तुम्हें पता नहीं कि
जो जीवित है,
तुम्हारे हीं कुछ शब्दों के भरोसे,
उसकी जिंदगी के
कई पृष्ठ उसर हैं
और "शायद"
तुम्हारी भी..............।
तन्हा जी,
आपकी कविताओं की ख़ास बात यह रही है कि वो कभी बनावटी नहीं लगतीं। भावनाएँ बिलकुल सत्य की छाप लिए होती हैं। कितनी सुंदर है यह पंक्ति!
तुम्हारे ही कुछ शब्दों के भरोसे,
उसकी जिंदगी के
कई पृष्ठ उसर हैं
और "शायद"
तुम्हारी भी..............
बहुत सुंदर ....अच्छा लगा पढ़कर ....
deepak ji,
aapki kavitaen waakai mere dil ko choo jati hai..
bahut hi saral andaj me sab kuch kah dena aapki khasishat hai..
bahut sundar rachna hai aapki..
"पृष्ठ पीठ नहीं दीखाते,
शब्द बंजर नहीं होते,
कविताएँ झूठी नहीं होती,
कवि कठोर नहीं होता"
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aapki kavita kaafi sachi aur saadi lagtin hain,
kuch apni kuch parayi lagtin hain,
kahin dil ki thesh kahin khushali lagtin hain,
jo bhi kaho har baat mein gehraayi lagtin hai..
har kavi ki bhavna ki sacchi tasweer utari hai aapne,
kiss saadgi se har baat kahi hai aapne...
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