वाह दीपक जी ,क्या ख़ूब लिखे है .......वक़्त वादों को ढो ता हैइसनसानी मन की कशमकश और समय पे दोषा रोपण कोक्या ख़ूब पंक्ति बद्ध किया हैआपकी लेखनी का मैं कायल हो के रह गया....
अच्च्ही पन्क्तियां लिखी है आपने वक्त के प्रति मानव की उपेश्ह्हा पर
startin lines r cool....make sense in the context of the poem... keep it up
ise hi kahete hain chand panktiyon me saari baat kah jaana...waqt se waqt ki suhaani muthbedh darshai hai.
acchi kavita likhi , dil prassan ho gaya shabdo ka chayan , evam bhavo ki abhivaykti puri tarah se hui hai sadhu wad
दीपक जी,आपकी इस विधा से भी परिचय हुआ आज और आशानुरूप फिर आपके माध्यम से गंभीर काव्य पढने को मिलाबहुत अच्छा लिखा है आपने"वक्त-एक कूली है,वादों को ढोता हैऔर लम्हों की मजूरी लेता है।"ह्म्म्म्, क्या बात हैबहुत सुन्दरसस्नेहगौरव शुक्ल
manaspatal par aaya hua har sabdh chota lagta hai, iss bhav par tippni karna kaafi bhari lagta hai....ur words r really kool n touching..
hmmmm.....baat mein dam hai...kavita ki laghuta hi uskee sundarta hai...jai hind...
वक्त, कूली के रूप में!!!!! तन्हाजी, आपकी कल्पना बताती है कि वक्त को बहुत करीब से समझा है आपने, आपकी अंतिम पंक्तियाँ -और लोग कहते हैं किवक्त गुजरता हीं नहीं।थके-हारे मजदूर की सोते समय ली जाने वाली लम्बी जम्हाई सी लगी।बधाई स्वीकार करें।
गहराई है रचना में..*** राजीव रंजन प्रसाद
aur log kahte hain ki waqt guzarata nahi bahut gahri baat
Post a Comment
11 comments:
वाह दीपक जी ,
क्या ख़ूब लिखे है .......
वक़्त वादों को ढो ता है
इसनसानी मन की कशमकश और समय पे दोषा रोपण को
क्या ख़ूब पंक्ति बद्ध किया है
आपकी लेखनी का मैं कायल हो के रह गया....
अच्च्ही पन्क्तियां लिखी है आपने वक्त के प्रति मानव की उपेश्ह्हा पर
startin lines r cool....
make sense in the context of the poem... keep it up
ise hi kahete hain chand panktiyon me saari baat kah jaana...waqt se waqt ki suhaani muthbedh darshai hai.
acchi kavita likhi , dil prassan ho gaya shabdo ka chayan , evam bhavo ki abhivaykti puri tarah se hui hai sadhu wad
दीपक जी,
आपकी इस विधा से भी परिचय हुआ आज और आशानुरूप फिर आपके माध्यम से गंभीर काव्य पढने को मिला
बहुत अच्छा लिखा है आपने
"वक्त-
एक कूली है,
वादों को ढोता है
और
लम्हों की मजूरी लेता है।"
ह्म्म्म्, क्या बात है
बहुत सुन्दर
सस्नेह
गौरव शुक्ल
manaspatal par aaya hua har sabdh chota lagta hai,
iss bhav par tippni karna kaafi bhari lagta hai....
ur words r really kool n touching..
hmmmm.....baat mein dam hai...kavita ki laghuta hi uskee sundarta hai...jai hind...
वक्त, कूली के रूप में!!!!! तन्हाजी, आपकी कल्पना बताती है कि वक्त को बहुत करीब से समझा है आपने, आपकी अंतिम पंक्तियाँ -
और लोग कहते हैं
कि
वक्त गुजरता हीं नहीं।
थके-हारे मजदूर की सोते समय ली जाने वाली लम्बी जम्हाई सी लगी।
बधाई स्वीकार करें।
गहराई है रचना में..
*** राजीव रंजन प्रसाद
aur log kahte hain ki waqt guzarata nahi bahut gahri baat
Post a Comment