मेरे माधो बिछड़े जो उधो रे, मैं तो हुई बावरी,
जोगन बनी बिफरूँ मैं सखे पर, जोगी हुए क्या वो भी?
सच-सच बता,
बंशीवाला
फफक के यूँ रोए? गश ऐसा खाए?
हिलें-मिलें सबसे वो वहाँ पे, हँसी-ठट्ठा खूब हीं,
सूखा-सूखा पतझड़ है यहाँ पे, बची जली दूब हीं,
माटी चुभे,
अपनी मुझे,
जिऊँ मैं कैसे जो, बैरी भए माधो...
जाके कहो उनसे कि भले हीं लीला रचें लाखों संग,
बंशी टेरें मथुरा में मगर जब, रंगें दो लब मेरे रंग,
साँसें वो लें,
मेरे हीं से,
देखें बिरज मुझमें, चाहे नहीं आएँ..
- Vishwa Deepak Lyricist
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