तुम सीपी हो या शंख,
या हो असंख्य
मेरे अंदर..
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तुमने जना है जिसे
वह मेरी हर ’कृति’ से विशाल है,
वह नोंक है कलम की,
सौंदर्य है सृष्टि का,
मेरे अंतस का सुर-ताल है...
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हम दोनों का अंश?
या फिर
भविष्य की इस निधि
के अंश हैं हम?
हमारा शुद्ध-रूप है वह
और अपभ्रंश हैं हम...
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शुक्रिया!
स्वाति, सीपी, शंख..
शुक्रिया असंख्य
इस अमृत के लिए...
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हम दोनों अब
अणु बन
इस अमृत में पिघलेंगे...
- Vishwa Deepak Lyricist