बतियाँ बनाओ न जी
रास न आए मोहे खाली खाली रतियाँ,
बतियाँ बनाओ न जी, आके करो बतियाँ...
साज सुहाए ना हीं, बोल हीं भाए मोहे,
कैसे रचूँ गीत सखी! कैसे लिखूँ पतियाँ..
पतियाँ न भेजे पिया, दरश दिखाए ना हीं,
जाने कैसे धड़के है, दोनों हीं की छतियाँ..
बैठी जाए छाती मोरी, सूजी जाए अखियाँ,
रास न आए मोहे खाली खाली रतियाँ...
बतियाँ बनाओ न जी, आके करो बतियाँ..
-विश्व दीपक
3 comments:
आपकी शानदार रचना पढ़ कर इब्ने इंशा की लिखी एक नज़्म याद आ रही है .... पेश-ए-नज़र है:
जले तो जलाओ गोरी पीत का अलाव गोरी
अभी न बुझाओ गोरी, अभी से बुझाओ ना
पीत में बिजोग भी है, कामना का सोग भी है
पीत बड़ा रोग भी है, लगे तो लगाओ ना
रूप का ये मान दे दें, जी का ये मकान दे दे
कहो तुम्हे जान दे दें, मांग लो लजाओ ना
गेसुओं की नागिनों से, बैरिनो अभागिनों से
जोगिनों बिरागिनों से, खेलती ही जाओ ना
करो तो ख्याल पूछो, आशिकों का हाल पूछो
एक दो सवाल पूछो, बात जो बढाओ ना
और भी हजार होंगे जो की दावेदार होंगें
आप पे निसार होंगे, कभी आजमाओ ना
'शेर' में 'नजीर' ठहरे, जोग में 'कबीर' ठहरे
कोई ये फकीर ठहरे, और जी लगाओ ना.
धन्यवाद अंकल!
जी, मुझे भी यह रचना बेहद पसंद है। नैय्यरा नूर की आवाज़ में इस नज़्म का मज़ा कई गुणा बढ जाता है। आप भी सुनियेगा:
http://www.youtube.com/watch?v=COTLDKLCC2Y
वाह वाह .....
दीपक जी बहुत खूब .....
आपका मेल न मिला इसलिए यहीं कमेंट में कहे जा रही हूँ ....
आपकी बेहतरीन क्षणिकायें पढ़ी थीं कभी .....
तो .....
अपनी १०, १२ क्षणिकायें तुरंत हमें मेल कर दें अपने संक्षिप्त परिचय और तस्वीर के साथ .....
हमें सरस्वती-सुमन पत्रिका में अतिथि संपादिका होने का गौरव मिला है जो क्षणिका विशेषां होगा ....
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