Monday, February 07, 2011

बतियाँ बनाओ न जी


रास न आए मोहे खाली खाली रतियाँ,
बतियाँ बनाओ न जी, आके करो बतियाँ...

साज सुहाए ना हीं, बोल हीं भाए मोहे,
कैसे रचूँ गीत सखी! कैसे लिखूँ पतियाँ..

पतियाँ न भेजे पिया, दरश दिखाए ना हीं,
जाने कैसे धड़के है, दोनों हीं की छतियाँ..

बैठी जाए छाती मोरी, सूजी जाए अखियाँ,
रास न आए मोहे खाली खाली रतियाँ...

बतियाँ बनाओ न जी, आके करो बतियाँ..


-विश्व दीपक

तुम बात करो तो


तुम बात करो तो गुण बरसे,
हम बात करें तो घुन बरसे?

अरे वाह रे मेरे लीलाधर,
यह नई कौन-सी चाल? सखे!
जो खुद को गेहूँ कहते हो,
पर हो गेहुँअन के लाल... सखे!

कई आस्तीनों से गुजरे हो,
हो साथ मेरे फिलहाल, सखे!
है ज्ञात मुझे कि तुम क्या हो,
जो कहूँ, आए भूचाल, सखे!

जो उर्वर को ऊसर कर दे,
तुम ऐसे खर-पतवार, सखे!
हाँ आज गिरा दूँगा तुमको,
हर के जिह्वा की धार, सखे!

सच यही है... ओ वाचाल सखे!!

फिर कहना कहाँ हैं कीड़ें वो,
थे मौन.. मगर तुम्हें सुन, बरसे,
मौनसून-सी जिनकी धुन बरसे!

तुम बात करो तो गुण बरसे?
हम बात करें तो घुन बरसे?


-विश्व दीपक