Saturday, September 25, 2010
जी का जंजाल
ज़िंदगी जी का जंजाल हो चली है,
मौत भी ससुरी मुहाल हो चली है..
न राशन रसद में,
न ईंधन रसद में,
न महफ़िल हीं जद में,
न मंज़िल हीं जद में,
ना पग ना पगडंडी,
सौ ठग हैं सौ मंडी,
दिल ठंढा, जां ठंढी,
शक्ति की सौं... चंडी
भी अब तो बेबस बेहाल हो चली है..
ज़िंदगी जी का जंजाल हो चली है..
न चेहरा हीं सच्चा,
न सीसा हीं सच्चा,
या किस्मत दे गच्चा,
या हिम्मत दे गच्चा..
जो थम लूँ तो अनबन,
जो बढ लूँ तो अनशन,
जो दम लूँ तो मंथन,
गंवा के सब अनधन
ये धरती तो अब पाताल हो चली है...
ज़िंदगी जी का जंजाल हो चली है..
-विश्व दीपक
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