जिनके घर लगे हों यादों के काफ़िले,
इन अश्कों के अक्स से आ मिले।
कतर डाले हैं मैने पर अंधेरों के,
फिर कफ़स में शब से कैसे गिले ।
इक आह और आह! दरार चाँद में,
दरार सिल जाए , दर्द कैसे सिले।
हरदम हीं खुदाया! हैं सालते मुझे,
जिंदगी औ मौत के सब बहाने छिले।
होना मैने आप का ढो लिया सालों,
न होना तेरा इस रूह से कैसे हिले।
रौनक उन लबों की हो मेरे जिम्मे,
गमनशीं ’तन्हा’ के ख्वाब हैं खिले।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
5 comments:
bhaut shaandaar gazal
बहुत ही सुंदर .
बधाई
इक आह और आह! दरार चाँद में,
दरार सिल जाए , दर्द कैसे सिले।
Thanks for your response to my poem 'tera ishq' on kavimitra. There was a mixed reaction and I felt it necessary to thank those who took time to appreciate it. The post has become old and out of list, so I had to explicitly inform you to please read my new comment on the same.
keep writing dude.
Naishe
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