Thursday, November 05, 2009
खिलंदड़ इश्क़
ये इश्क़ न जाने बात-बतंगड़,
इश्क़ तो है ये बड़ा खिलंदड़..
बिन पूछे आ जावे है ये,
बिना जोर भा जावे है ये,
चुपके-चुपके चैन-वैन के
रसद सभी खा जावे है ये,
तोल-मोल के नींद हीं देवे,
आँख तले छा जावे है ये,
बड़ा बेरहम बेदर्दी है,
आके कभी ना जावे है ये.
रहे कोई ना रहे कोई
पर इश्क़ जिये बन मस्त कलंदर,
इश्क़ तो है ये बड़ा खिलंदड़।
शाम ढले ये कसक जगावे,
चाँद तले एक झलक दिखावे,
सात साधुवन की संगत में
सात जन्म के सबक बनावे,
बात-बात में आसमान के
कैनवास को लपक हिलावे,
रात गई फिर तारे चुनके
ख्वाब गढे जो पलक पे आवे।
कहे कोई ना कहे कोई
पर इश्क़ लगे है कोई धुरंधर,
इश्क़ तो है ये बड़ा खिलंदड़।
-विश्व दीपक
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3 comments:
आपका खिलंदड इश्क अच्छा है ।
शाम ढले ये कसक जगावे,
चाँद तले एक झलक दिखावे,
सात साधुवन की संगत में
सात जन्म के सबक बनावे,
बात-बात में आसमान के
कैनवास को लपक हिलावे,
रात गई फिर तारे चुनके
ख्वाब गढे जो पलक पे आवे।
bahut sahi bayani hai ji
धन्यवाद आशा जी.....दीदी आपका भी बहुत-बहुत शुक्रिया।
-विश्व दीपक
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