तमाशबीनों का शहर है..
सब हैं चुप शब की तरह..
बुझ रहा है हर दीया,
हर मोड़ पर अंधियारे की
आस्तीन लाल है,
लाश सूरज की लिए
हर सहर हीं बेहाल है...
तमाशबीनों का शहर है,
सब हैं चुप शब की तरह..
और
हम भी तुर्रम खां कहाँ!!
(हम भी बस बकते हीं हैं)
- Vishwa Deepak Lyricist
1 comment:
"और
हम भी तुर्रम खां कहाँ!!
(हम भी बस बकते हीं हैं)"
बहुत बढ़िया।
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