Saturday, October 27, 2007

तेरी आँखों में आसमां

तेरी आँखों में आसमां आकर यूँ भर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
तारों के तार बुन रही पलकों के कोर पर,
उस चाँदनी का हुस्न, गिरकर निखर गया।

चिलमन से छन-छनकर,
मुझको निहारती,
तेरी इस रोशनी से मैं
जी-जीकर मर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।

कुहरे-सा एक-एक पल,
तेरे करीब में,
वक्त की सड़क पर यूँ
जम कर बिखर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।

अलकों में रातरानी,
भौंह पर यह रात फ़ानी,
गालों पर आसमानी
सिंदुर की कहानी।

दर्पण थमा-थमाकर,
मेरी निगाह को,
सीसे-सा तेरा नूर तो
कई रूप धर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।

ओठों पर भर-भराकर,
तुम्हारे लोच से
क्षितिज से टूटकर वो
इन्द्रधनक उतर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।

गरदन पर धूप मानी,
कांधों पर छांव दानी,
कटि पे बे-म्यानी
तलवार की निशानी।

नख-शिख यूँ रूमानी तुझे देखकर शायद,
जहां का हरेक शय,तुझमें हीं जड़ गया,
तेरी आँखों में आसमां आकर यूँ भर गया,
तूने उठाई पलकें जो , सूरज सँवर गया।


-विश्व दीपक 'तन्हा'

7 comments:

amrendra kumar said...

Bahut achhi kavita hai VD Bhai...

pata hin nahin chala ki
"mahbbob ko aasman ki sangya diya ja raha hai ya..
fir aasman ko mahboob ki"

par mujhe in panktiyon ka assman se ki naata judta nahin dikhi deta....
" दर्पण थमा-थमाकर,
मेरी निगाह को,
सीसे-सा तेरा नूर तो
कई रूप धर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया। "
par ye panktiyan hin mujhe sabse achhi lagi......

Badhai sweekar karen

पारुल "पुखराज" said...

अलकों में रातरानी,
भौंह पर यह रात फ़ानी,
गालों पर आसमानी
सिंदुर की कहानी।

सुंदर …बहुत सुंदर…

Dr. Seema Kumar said...

कुहरे-सा एक-एक पल,
तेरे करीब में,
वक्त की सड़क पर यूँ
जम कर बिखर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।

अलकों में रातरानी,
भौंह पर यह रात फ़ानी,
गालों पर आसमानी
सिंदुर की कहानी।


वाह !! क्या खूब लिखा है !

SRK said...

kavita sada ki tareh manbhavan hai...
par iss baar mera aapse ek prasn hai...aur sach main serious waala...aapni prerna koun hai??..bina uske agar aap aisa likh rahe hain to wo hogi tab to aap pata nahi kya kar daaloge...

तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।...
waah!! ati sundar tareeke se aapne kavita ko roop diya hai...

रंजू भाटिया said...

वाह वाह बहुत ही सुंदर भाव हैं इस कविता के
बहुत ही सुंदर

कुहरे-सा एक-एक पल,
तेरे करीब में,
वक्त की सड़क पर यूँ
जम कर बिखर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।बहुत सुंदर…

राजीव रंजन प्रसाद said...

वैसे तो पूरी कविता ही लाजवाब है किंतु यह पंक्ति अपने आप में ही पूरी कविता है:


"तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।"


*** राजीव रंजन प्रसाद

गौरव सोलंकी said...

बहुत रोमांटिक कविता है विश्वदीपक भाई।
प्यार ही प्यार दिख रहा है। बहुत खूबसूरती से तारीफ़ की है तुमने।
तेरी आँखों में आसमां आकर यूँ भर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।

अलकों में रातरानी,
भौंह पर यह रात फ़ानी,
गालों पर आसमानी
सिंदुर की कहानी।
वाह!

बहुत दिनों बाद तुमने फिर दिल के उन्हीं तारों को छू दिया।
बधाई।