उसी घटना के उपलक्ष्य में 'मैं' आज सबके सामने आंग्ल
भाषा और अपने आंग्लिक ज्ञान के रहस्यमय तथ्यों को अनावृत करने को प्रस्तुत हूँ.
तात,यह मेरा आंग्लिक ज्ञान,
मानो देवल में मयपान,
मानो नभ में हो श्मशान,
मानो जन्तु पंख वितान,
मानो सुधा हो गरल समान,
मानो विज्ञ अज्ञ अंजान,
मानो तड़ित जड़ित भय-भान,
तात,यह मेरा आंग्लिक ज्ञान.
तात,यह मेरा आंग्लिक ज्ञान,
मानो नीरद नीरस निष्प्राण,
मानो निशिचर हो दिनमान,
मानो सत्त्व तत्व-हित विधान,
मानो सरवर हो सुनसान,
मानो अशोक शोक-संज्ञान,
मानो बुद्ध हो बिन निर्वाण,
तात,यह मेरा आंग्लिक ज्ञान.
तात,यह मेरा आंग्लिक ज्ञान,
मानो गर्दभ को श्रमदान,
मानो श्वान रहित निज घ्राण,
मानो काक को पिक पहचान,
मानो शूकर शुचि-सुजान,
मानो तुरग को पद-अभिमान,
मानो आंग्ल खगोल-विज्ञान,
तात,यह मेरा आंग्लिक ज्ञान.
-तन्हा कवि
3 comments:
आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी| बहुत दिन बाद इतनी अच्छी हिन्दी का प्रयोग देखा………
wah.... bahut khoob....ishara kiya hai.... achchi soch hai..
archana
aapki kavita kaafi achchi lagi.........likhte waqt aapne kaafi imaandaari dikhaai hai.....achcha hai kaafi achcha hai!!!
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