Sunday, May 29, 2011
पी रे
तड़पत है मन पी रे,
तरसत क्षण क्षण जी रे,
भिनसर से आये ना बलमा...
निर्मोही रे!
निकसत है दम मोरा,
बरजोरी करजोरी पीऊ
कसहुँ मैं दर्शन लूँ तोरा..
फुरसत में इत आ जा,
मुहुरत में चित आ जा,
अनबन से रोए है जियरा..
मुरझायो अंखियन की तुलसी का बिरवा,
अंसुवन से उबले है निंदिया..
सुमिरूँ मैं तोहे पी,
कुछुहुं ना सोहे जी,
बिंदिया न नथनी न झुमका न कंगना..
पकड़त हूँ पैयां मैं,
बिखरत हूँ सैयां मैं,
जी लूँ जो धरि ले तू बइयां..
तड़पत है मन पी रे,
तरसत क्षण क्षण जी रे,
भिनसर से आये ना बलमा...
-विश्व दीपक
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