tag:blogger.com,1999:blog-282562172024-02-19T22:22:23.248+05:30अंतर्नादविश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.comBlogger263125tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-22839782400158229952023-07-05T14:33:00.005+05:302023-07-05T14:34:14.190+05:30तुम.. मेरी बेटी <div dir="auto"><span face="Segoe UI Historic, Segoe UI, Helvetica, Arial, sans-serif"><span style="font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">
तुम्हारी हथेली की लकीरों पर
मैंने अपने अस्तित्व के बीज़
छोड़ रखे हैं.
तुम्हारी हँसी
एक कुएँ में घुली चाशनी है.
हर सुबह उतरता धुँधलका
तुम्हारी आँखों की चिड़ियों की
जोहता है बाट.
</span></span></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak</a></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-66896799228972791692023-07-05T14:30:00.001+05:302023-07-05T14:31:11.203+05:30लिखूँगा<div dir="auto"><span face="Segoe UI Historic, Segoe UI, Helvetica, Arial, sans-serif"><span style="font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">
गीतों में, गज़लों में एक
चहारदीवारी है।
मैं तुम्हारे प्रेम को
लिखूँगा एक अकविता में।
.
असमझा एक विषय,
अनुपजा एक ख्याल,
या फिर अनलिखी एक कविता -
प्रेम यही है।
.
क्या हीं लिखूँगा!
.
बस महसूसूँगा।
</span></span></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak</a></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-44758237540424327962022-02-18T12:57:00.008+05:302022-02-18T12:57:55.408+05:30चलो प्रेम करें<div dir="auto"><span face="Segoe UI Historic, Segoe UI, Helvetica, Arial, sans-serif"><span style="font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">
चलो प्रेम करें.
एक दूसरे की झुंझलाहट झेल चुकने के बाद
अहम को दें तिलांजलि
और गले मिल
घंटों रोएँ
प्रेम में जब आ जाए
सच कहने की ताकत- सुनने का हौसला
और बनावटीपन हो दरकिनार
तब
एक-दूजे को अनकहे निहारते हुए
चलो प्रेम करें।
तुम्हें बुरा लगे
मुझ कवि का कुछ न लिखना,
मुझे लगे अजीब
तुम्हारा अचानक कभी
कुछ भी न लगना अजीब.
हम बच्चों को संभालते, संवारते
जब बस दर्ज करते रहें अपनी उपस्थितियाँ,
तब किसी लम्हे
तुम या मैं
हो जाएं शरारती
और पूछें, बताएँ, आदेश दें
कि
चलो प्रेम करें।
क्या कहती हो?
</span></span></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak</a></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-71449902800571869362021-08-09T18:22:00.002+05:302021-09-21T15:55:31.445+05:30बेटी<div dir="auto"><span face="Segoe UI Historic, Segoe UI, Helvetica, Arial, sans-serif"><span style="font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">
बेटी! तुम रोज़ आकाश गढ़ती रहना।
मैं तुम्हारे साथ, तुम्हारे लिए
बेझिझक उड़ता रहूँगा।
.
अपनी गोद खुली रखना
जहाँ मेैं खुलकर हँस सकूँ, रो सकूँ,
भरपूर रो सकूँ।
.
सकुचाए हुए रिश्ते
सिकुड़ जाते हैं।
तुम दोस्त रहना!
.
बेटियों!
न कमना,
न थमना।
बढना
और बढ़ते हुए
नज़र ऊँची रखना।
.
तुम इस पिता की सृष्टि की
दो सुंदर कृतियाँ हो।
</span></span></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak</a></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-80654563468944712252021-04-18T17:27:00.005+05:302021-04-18T17:27:46.133+05:30समाज<div dir="auto"><span face="Segoe UI Historic, Segoe UI, Helvetica, Arial, sans-serif"><span style="font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">
प्रेम समाज से,
समाज के उस वर्ग से
जिसे समाज कहना जायज हो।
खरपतवारों की भीड़
खा जाती है ज़मीन को
और पास खड़े पौधे भी
बनने लगते हैं ठूंठ।
इसलिए सावधान!!!!!
जिन सबने पंखों के लालच में
नोंच डाली हैं अपनी जड़ें -
उन्हें उनका क्षणभंगुर आसमान मुबारक!
मैं अपनी चहारदीवारी में खुश हूँ।
</span></span></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak</a></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-74975183944429526582021-04-18T17:25:00.003+05:302021-04-18T17:25:37.341+05:30प्रेम<div dir="auto"><span face="Segoe UI Historic, Segoe UI, Helvetica, Arial, sans-serif"><span style="font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">
तुम्हारी आँखों में देखता रहूँ
और रो दूँ -
प्रेम इस हद से शुरू होना चाहिए
बाहर की बेढ़ब दुनिया
तुम्हारी आँखों से छनकर दिखती है जब -
बचता है केवल सच , सुनहला सच
मैं अपने आप में खोया हूँ कहीं,
शब्द गुम हैं अंतर्मन की कंदराओं में -
लिख देना आसान है,
कह देना नितांत मुश्किल....
बस तुम समझ लिया करो
जितना भी कुछ मुझसे चलकर तुमतक पहुँच न पाया
वह सबकुछ तुम्हारी आँखों ने पढ़ा तो होगा हीं!!!!!!
</span></span></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak</a></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-14293450057187648182021-04-18T17:16:00.007+05:302021-04-18T17:17:57.798+05:30द्वंद्व<div dir="auto"><span face="Segoe UI Historic, Segoe UI, Helvetica, Arial, sans-serif"><span style="font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">
कलम सोच रही है -
कुछ कहूँ।
पन्ने मुँह फुलाए हुए हैं-
विचारों की चोट इन्हें बर्दाश्त नहीं।
यह नया द्वंद्व है।
कवि पहले यहाँ संभले तो उलझे समाज से।
</span></span></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak</a></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-62719932624753527912020-11-03T17:18:00.007+05:302020-11-03T17:33:31.275+05:30सुकृति <div dir="auto"><span face="Segoe UI Historic, Segoe UI, Helvetica, Arial, sans-serif"><span style="font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">मैं तुझमें अपना होना देखूं,
तेरी गोद में रोज़ बिछौना देखूं।
.
तेरी हँसी में देखूं चित्रहार,
मेरे जीवन का सारा विस्तार,
तेरे नाम से जोड़ के नाम मेरा,
मैं रख दूं तुझमें अपना संसार।
.
संसार की सारी समस्याओं
का खोना, जादू-टोना देखूं।
तेरी गोद में रोज़ बिछौना देखूं।
.
मैं बेमकसद बहती एक नदी,
न अर्थ, न लक्ष्य, न पाबंदी,
एक दिन सब बदला एक क्षण में
जब प्राप्त हुई मुझे 'सुकृति'।
.
उस क्षण से सदी की करवट का
करतब मैं कोना-कोना देखूं।
तेरी गोद में रोज़ बिछौना देखूं।</span></span></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak</a></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-53993804390348503042020-11-03T17:12:00.008+05:302020-11-03T17:34:54.737+05:30मृत्यु की बिकवाली<div dir="auto"><span face="Segoe UI Historic, Segoe UI, Helvetica, Arial, sans-serif"><span style="font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">ऐसी क्या कंगाली है?
मृत्यु की बिकवाली है।
जिसके घर का लाल गया,
वह भी क्यों बेहाल हुआ?
TRP के पागल-हाथों में
घुट-घुटकर बदहाल हुआ।
वह था कई नज़रों का दीपक,
पढा लिखा बेजोड़ विचारक,
इतना घिसा गया उसके जाने को
....यादों पर चढ़ बैठे दीमक।
NASA छुपा, नशा खुल गया,
Moon ऊपर अवगुण ढुल गया,
नीत्शे और सात्र बिला गए,
Split से दर्शनशास्र धुल गया।
हासिल क्या हीं हुआ पिता को?
मौत सही , बदनामी सहो।
'अनर्गल' मीडिया के लिए तो
यह रोज़ की कव्वाली है,
मृत्यु की बिकवाली है।</span></span></div><div dir="auto"><br /></div><div dir="auto">
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak</a></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-56010015919593473582018-12-17T11:42:00.001+05:302018-12-17T11:47:21.480+05:30बेटियाँ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"><br />
बेटियाँ माँ होती हैं| <br />
<br />
रूठती हैं, मनाती हैं ,<br />
सराहती हैं, सुनाती हैं,<br />
खीझती हैं, खींचती हैं,<br />
रेशा-रेशा सींचती हैं| <br />
<br />
बेटियाँ होती हैं जड़ <br />
पिता के तलवों की,<br />
बीज़ <br />
हथेली की लकीरों की,<br />
आवाज़<br />
मूक जिजीविषा की,<br />
ख्वाब<br />
हर बुनी-अनबुनी नींद की| <br />
<br />
बेटियाँ <br />
जब हक़ जताती हैं <br />
तो <br />
भरी होती हैं आत्मविश्वास से,<br />
हर क्रिया, प्रतिक्रिया पर <br />
होता है एकाधिकार उनका|<br />
पिता फिर <br />
अपने अंश का अंश बन<br />
सौंप देता है अपनी हर महानता,<br />
हर विशालता <br />
बेटी के बचपने की गोद में| <br />
.<br />
और <br />
फूल जाता है आसमान तक...<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-70556355456989695342018-02-22T18:27:00.000+05:302018-02-22T18:28:02.685+05:30तो बड़ा शायर हूँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
मैं चाँद को दरीचों में उतारूँ तो बड़ा शायर हूँ,<br />
मैं रात से गलीचों को सवारूँ तो बड़ा शायर हूँ,<br />
मैं ख़्वाब में तारों की पनाह लूँ तो बड़ा शायर हूँ,<br />
मैं आग से साँसों की निबाह लूँ तो बड़ा शायर हूँ,<br />
मैं रूह की ये राख उड़ा दूँ तो बड़ा शायर हूँ,<br />
मैं जिस्म की हर फ़ाँक जला दूँ तो बड़ा शायर हूँ।<br />
<br />
मैं हर बात वो कर जाऊँ जो मुमकिन हीं नहीं,<br />
शब्दों में वो पा जाऊँ जो हासिल हीं नहीं,<br />
आँखों पे टाँक दूँ मैं कोई और हीं जहां,<br />
कानॊं में ठेलता रहूँ उलझी-सी दास्तां,<br />
पलकों को उबासी से पशेमान मैं कहूँ,<br />
कदमों को सज़ायाफ़्ता परेशान मैं कहूँ,<br />
सीने में खोंस आऊँ मैं बुलबुल कोई घायल,<br />
रानाईयाँ इतनी भरूँ, कुदरत भी हो कायल,<br />
लैला के सुर्ख होठों को दैर-ओ-हरम कहूँ,<br />
मजनूं की मौत आए तो हक़ बेशरम कहूँ,<br />
मैं हद कोई रहने न दूँ लिखने जभी बैठूँ,<br />
हर हर्फ़ सौ गुना करूँ, हर ख्याल मैं ऐठूँ,<br />
मैं बंद की बंदिश हीं मिटा दूँ तो बड़ा शायर हूँ,<br />
हर चंद को मुफ़लिस जो बना दूँ तो बड़ा शायर हूँ।<br />
<br />
पर मैं अगर जो सीधे-सादे लफ़्ज़ों में इतना कहूँ,<br />
जी नही पाऊँगा तुझ बिन, बोल दे कैसे रहूँ,<br />
या कि मैं ऐसा कहूँ कि झूठों का ये दौर है,<br />
डूबते इस देश का अब भ्रष्ट हीं सिरमौर है,<br />
या कि खुश हो लूँ कभी तो बोल मैं यूँ कर लिखूँ,<br />
भूल कर सारे गमों को ज़िंदगी बेहतर लिखूँ,<br />
मैं अगर कुछ ना लपेटूँ, ना कहीं अतिशय करूँ,<br />
तो मुझे डर है कि यूँ मैं स्तर ना नीचे करूँ।<br />
<br />
....<br />
<br />
मैं यहाँ सिर्फ़ मैं नहीं वो सभी शायर हूँ जो,<br />
सोच में बदलाव से शापित हैं कि मरते रहो,<br />
वो जो पहले लिखते थे कुछ और, अब कुछ और हीं,<br />
पहले लिखते दिल से थे, अब तो दिल लगता नही,<br />
लेकिन करते भी तो क्या, वक्त की ये माँग है,<br />
"कोई नई उपमा रचो, लिखो वो जो ऊट-पटाँग है,<br />
फिर तभी हरेक से पूछे और पूजे जाओगे,<br />
फिर नई कविता के दम पे पुस्तकों में आओगे,<br />
और हाँ, अपने सड़े-से सब पुराने छंदों को,<br />
दूर फेंको कि नज़र न आए हुनर-पसंदों को"<br />
बस इसी कारण ये सारे हुनर अपना त्याग के,<br />
भेड़-चाल में लगे हैं रात-रात जागके,<br />
बस इसी का डर है कि दौड़ में छूटे नहीं,<br />
लेखनी से रिश्ता जो था, अब कहीं टूटे नहीं।<br />
<br />
इस तरह लेखन जो हो तो लिखने का क्या फ़ायदा,<br />
नई सोच हीं सही सोच है- ये है कहाँ का कायदा?<br />
गर मुक्तछंद हीं है सही तो छंद को जनना न था,<br />
वेदों को फिर छंद-युक्त पोथियाँ बनना न था,<br />
जो निराला ने लिखा, निस्संदेह वो अतुल्य है,<br />
पर गुप्त का, प्रसाद का, दिनकर का भी तो मूल्य है,<br />
इसलिए इतनी गुजारिश करता हूँ तुमसे ओ मित्र!<br />
एक-सी नज़रों से देखो इन चितेरों के ये चित्र,<br />
फिर तभी तो एक युग में हर तरह के रंग होंगे,<br />
देखकर कविता की खुशियाँ, सब हितैषी दंग होंगे।<br />
<br />
....<br />
<br />
जो कहा इतना हीं कुछ है, तो ये भी कहता चलूँ, <br />
वो लिखो जो हर किसी को समझ आए, दे सुकूं,<br />
"गर सभी समझें कवि को तो कवि काहे का वो",<br />
परसाई जी की बात ये एक व्यंग्य है,तुम जान लो,<br />
इसलिए तुम शब्द दो सुलझे हुए ख़्यालात को,<br />
जो अना आगे बढे तो रोक लो जज़्बात को,<br />
ना लिखो ऐसा कि लोग डर से बस अच्छा कहें,<br />
कि अगर कुछ ना कहा तो सब न फिर बच्चा कहें,<br />
बेवज़ह-से लफ़्ज़ को हर शेर से तुम नोंच लो,<br />
छूना हो जो दिल अगर तो सोच को कुछ लोच दो।<br />
<br />
और ये भी ध्यान हो कि शायरी बेमोल है,<br />
तो भला कैसे यहाँ छोटा-बड़ा का तोल है,<br />
फिर भी गर कोई धर्म-कांटा आए तो ऐसा न हो,<br />
शब्द सारे "बाट" हों और भाव का रूतबा न हो,<br />
या कि बस हीं भाव हो और शब्द सारे गौण हों<br />
ज्यों कोई ज्ञानी, सुधर्मी जन्म से हीं मौन हो,<br />
इसलिए मेरा मानना है- एक उचित अनुपात हो,<br />
फिर तभी तो जब किसी शायर से कोई बात हो,<br />
तो वो बस दिल की कहे और बस दिल की सुने,<br />
और दिल हीं दिल में वो बस यही बातें गुने-<br />
किसी दिल में जो पनाह लूँ तो बड़ा शायर हूँ,<br />
अगर खुद से हीं निबाह लूँ तो बड़ा शायर हूँ।<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-52861841237815728212018-02-04T20:23:00.000+05:302018-02-04T20:24:30.120+05:30तेरे सीने से मेरे सीने तक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
वो चली <br />
अटखेली <br />
तेरे सीने से <br />
मेरे सीने तक| <br />
<br />
मैं होश बचाकर क्या जीतूँ ?<br />
तुझे आँख चुराकर क्या हासिल?<br />
हम मिलकर साँस -साँस बोएँ,<br />
दो दिलके आस-पास बोएँ,<br />
जन्मे तो दोनों का हिस्सा,<br />
कुछ मेरा- कुछ तेरा किस्सा,<br />
एक मीठी-सी <br />
निम्बोली <br />
तेरे सीने से <br />
मेरे सीने तक| <br />
<br />
तू बारिश हो ले भादो की <br />
मैं अगहन की सौंधी-सी धूप ,<br />
हम साथ-साथ थिरकें-ठिठकें<br />
ले-लेकर एक-दूजे का रूप!<br />
हम कभी मेंड़ ,कभी खेत बनें,<br />
फल , मिट्टी , पानी, रेत बनें,<br />
हम हर मौसम की छाया हों,<br />
हर मौसम हममें समाया हो,<br />
खुशियों की <br />
यह रंगोली <br />
तेरे सीने से <br />
मेरे सीने तक | <br />
<br />
ये चली <br />
अटखेली ......<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-37435783249809621862017-12-21T14:18:00.000+05:302017-12-21T14:18:37.193+05:30तुम हँसना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
जब घाम गिरे<br />
या बचकानी दुनिया के फिकरे<br />
दो कौड़ी के दाम गिरें,<br />
तुम हँसना!<br />
<br />
एक माया है,<br />
दिन-रात नज़र का साया है,<br />
उनकी कथनी से क्या हासिल,<br />
खुद में रखना खुद को शामिल,<br />
बढते जाना,<br />
गढते जाना,<br />
हर नींद ख़्वाब चढते जाना,<br />
फिर चाहे अनथक पैरों पर<br />
धरती के जो इल्ज़ाम गिरें,<br />
तुम हँसना!<br />
<br />
हमने तुममें साँसें फूँकी?<br />
ना!<br />
तुमने हममें साँसें फूँकी,<br />
तुमने हममें आसें फूँकी,<br />
खुशियों में जीवन आ उतरा,<br />
घर में एक आँगन आ उतरा,<br />
हम ऋणी तुम्हारे हैं बेटी,<br />
तुम खुद हमसे उऋण रहना,<br />
और चाहे जितनी भी शर्त्तें<br />
तुमपर अपनों के नाम गिरें,<br />
तुम हँसना!<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-29168047325912162822017-02-14T19:08:00.000+05:302017-02-14T19:08:37.838+05:30राष्ट्रद्रोह <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
राष्ट्रद्रोह का आरोपण! <br />
.<br />
नाखून तक न कटाकर शहीद कहलाने वालों का <br />
'तुरूप का इक्का',<br />
रेत में सर डाले शुतुरमुर्ग के लिेए रामबाण सुरक्षा-कवच,<br />
बवासीर-वादियों का 'लवण-भास्कर चूर्ण'...<br />
.<br />
राष्ट्रद्रोह का हर सुबह उच्चारण<br />
जगाता है एक नई स्फूर्ति,<br />
पल में करता है छू <br />
गूढ से गुह्यतम हर-एक गुप्त रोग;<br />
जागृत करता है कुंडलिनी<br />
जिह्वा के इर्द-गिर्द...<br />
.<br />
.<br />
राष्ट्रद्रोह के पैमानें<br />
भोले हैं,<br />
मुहरें<br />
हैं सुलभ,<br />
चश्में<br />
सुसंस्कृत!<br />
.<br />
.<br />
मैं जीवित हूँ<br />
जीजिविषा के साथ<br />
और इसीलिए<br />
तुम्हारी लेखनी आतुर है<br />
डुबोने के लिए<br />
इसे<br />
अपराध की किसी-न-किसी श्रेणी में......<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-78984129872483335152016-11-26T10:18:00.003+05:302016-11-26T10:19:09.517+05:30चेहरा और नीयत <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
हम चेहरे चुनते हैं,<br />
हम चेहरे सुनते हैं,<br />
चेहरे की लीपापोती को <br />
चेहरे-सा गुनते हैं...<br />
.<br />
चेहरे पर सारी नीयत <br />
आकर रुक जाती है,<br />
चेहरे पर सच्ची सीरत <br />
रुककर झुक जाती है...<br />
.<br />
चेहरा औरों की खातिर <br />
मस्तिष्क हो जाता है,<br />
चेहरा हर थोथे निर्णय का <br />
मालिक हो जाता है...<br />
.<br />
चेहरा चेहरा न होकर <br />
इंसान-सा जीता है,<br />
चेहरा इस ओछी दुनिया में <br />
भगवान सरीखा है....<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-10697042712027281002016-09-15T17:32:00.000+05:302016-09-15T17:32:16.603+05:30यह तुम्हारा देवता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
मैं परसो तक तुम्हारा था,<br />
आज?<br />
. <br />
तुम हारे हो,<br />
मैं नहीं।<br />
. <br />
सच घोड़े के तलवों में ठुकी <br />
काली नाल है,<br />
रुकना, चलना, मुड़ना - सब भारी!<br />
सच उस्तरा है<br />
दो-धारी!!!<br />
. <br />
निरपेक्ष सच <br />
नहीं सरकता गले के नीचे. .<br />
पर <br />
सच सापेक्ष भी तो नहीं होता.. <br />
absolute entity है ये.… <br />
. <br />
निष्पक्ष सच?<br />
सच का पक्ष क्या?<br />
. <br />
तुम्हारे सच का पक्ष है,<br />
वह पिछले झूठों से थोड़ा कम झूठा है.. <br />
आज की रात कल की रात से कम काली है,<br />
इसे सुबह कहें?<br />
. <br />
यह कातिल सर नहीं काटता,<br />
नस काटता है... <br />
यह तुम्हारा देवता है। <br />
. <br />
यह देवता <br />
यह सच <br />
तुम्हें मुबारक।<br />
तुम हारे हो,<br />
मैं नहीं......<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-54624206134849733802015-09-05T15:40:00.000+05:302015-09-05T15:40:35.974+05:30मेरे माधो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
मेरे माधो बिछड़े जो उधो रे, मैं तो हुई बावरी,<br />
जोगन बनी बिफरूँ मैं सखे पर, जोगी हुए क्या वो भी?<br />
सच-सच बता,<br />
बंशीवाला<br />
फफक के यूँ रोए? गश ऐसा खाए?<br />
<br />
हिलें-मिलें सबसे वो वहाँ पे, हँसी-ठट्ठा खूब हीं,<br />
सूखा-सूखा पतझड़ है यहाँ पे, बची जली दूब हीं,<br />
माटी चुभे,<br />
अपनी मुझे,<br />
जिऊँ मैं कैसे जो, बैरी भए माधो...<br />
<br />
जाके कहो उनसे कि भले हीं लीला रचें लाखों संग,<br />
बंशी टेरें मथुरा में मगर जब, रंगें दो लब मेरे रंग,<br />
साँसें वो लें,<br />
मेरे हीं से,<br />
देखें बिरज मुझमें, चाहे नहीं आएँ..<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-49188437720054341822015-03-04T01:16:00.001+05:302015-03-04T01:17:02.955+05:30हमारा शुद्ध-रूप है वह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
तुम सीपी हो या शंख,<br />
या हो असंख्य<br />
मेरे अंदर..<br />
.<br />
तुमने जना है जिसे<br />
वह मेरी हर ’कृति’ से विशाल है,<br />
वह नोंक है कलम की,<br />
सौंदर्य है सृष्टि का,<br />
मेरे अंतस का सुर-ताल है...<br />
.<br />
हम दोनों का अंश?<br />
या फिर<br />
भविष्य की इस निधि<br />
के अंश हैं हम?<br />
हमारा शुद्ध-रूप है वह<br />
और अपभ्रंश हैं हम...<br />
.<br />
शुक्रिया!<br />
स्वाति, सीपी, शंख..<br />
शुक्रिया असंख्य<br />
इस अमृत के लिए...<br />
.<br />
हम दोनों अब <br />
अणु बन <br />
इस अमृत में पिघलेंगे...<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-49866882056249796462014-05-18T18:26:00.000+05:302014-05-18T18:26:33.519+05:30और आ गए प्रभु जी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
प्रभु जी आएँगे,<br />
चाशनी में गुड़ की रोटी डुबाएँगे,<br />
गोद में बैठाकर हमको खिलाएँगे,<br />
दिन तर जाएँगे । <br />
<br />
सदियों से आँखों में सपना था जिनका,<br />
झटके से आँखों में उतरेगा तिनका,<br />
मांझी बन तिनके को पार वो लगाएँगे,<br />
काॅर्निया से रेटिना तक धंसते वो जाएँगे,<br />
सच कर दिखाएँगे । <br />
<br />
देश क्या विदेश में भी धाक होगी उनकी,<br />
लाल कृष्ण झुकेंगे, हालत यही "मुन" की,<br />
चुटकी में देश से वो दुर्दिन मिटाएँगे,<br />
हफ्ते में दुनिया के अव्वल हो जाएँगे,<br />
दुश्मन थरथराएँगे । <br />
<br />
भगीरथ के डैडी हैं, माँ ने बुलाया है,<br />
उनके सिवा जो भी है वो छलावा है,<br />
सिंहासन है उनका, वही आ संभालेंगे,<br />
राज कैसे करते हैं, आकर दिखाएँगे,<br />
इतिहास बनाएँगे । <br />
<br />
हाथ हमने जोड़ा है,<br />
बस एक भरोसा है,<br />
प्रभु जी आएँगे,<br />
दिन तर जाएँगे ।<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-71667653788367374842014-05-18T18:21:00.000+05:302014-05-18T18:21:59.432+05:30साल भर पुरानी वह बात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
साल भर पुरानी वह बात,<br />
जिसकी उम्र महज एक साल है-<br />
बड़ी हीं ताजी है।<br />
<br />
मेरी ’बुक-सेल्फ’ की सबसे बोरिंग किताब में भी<br />
भर गई थीं रंगीनियां...<br />
<br />
आबाद हो चले थे<br />
दिन-रात के कई ’अनाथ’ हिस्से..<br />
<br />
नींद हो चली थी साझी<br />
और ख्वाब पूरे..<br />
<br />
अब बेफिक्री फिक्र देती थी<br />
और फिक्र का बड़ा-सा बंडल<br />
उतर गया था किन्हीं ’और’ दो आँखों में..<br />
मेरे नाम के मायने भी बदल गए थे शायद..<br />
<br />
तभी तो<br />
भले पुकारा जाऊँ सौ बार;<br />
चिढता न था...<br />
<br />
सच में-<br />
साल भर पुरानी वह बात,<br />
जिसकी उम्र महज एक साल है-<br />
बड़ी हीं ताजी है।<br />
<br />
और हर पल जवां रखा है इसे<br />
तुमने...<br />
बस तुमने!!!<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-57270743299590308872014-03-09T18:11:00.001+05:302014-03-09T18:11:30.950+05:30तुम्हारा मौन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
आँखें मूंदो और महसूस करो -<br />
ज़िंदगी तुम्हारे दो शब्दों के बीच के अंतराल में<br />
कुलाचें भर रही है,<br />
खिड़कियाँ खुली हैं आमने-सामने की<br />
और<br />
बहुत कुछ अनकहा गुजर रहा है<br />
दीवारों की सीमाएँ तोड़कर..<br />
<br />
मैंने कुछ कहा नहीं है,<br />
फिर भी <br />
ध्वनियों की अठखेलियाँ हैं तुम्हारे सीने में<br />
और<br />
तुम्हारा मौन जादूगर-सा <br />
शून्य से उतार रहा है शब्द<br />
टुकड़ों में...<br />
<br />
आँखें मूंदो और महसूस करो-<br />
गले के इर्द-गिर्द छिल रही है<br />
शब्दों की चहारदीवारी<br />
और <br />
कई अहसास सशरीर पहुँच रहे हैं<br />
तुम्हारे-मेरे बीच...<br />
<br />
सुनो!<br />
संभालकर रख लो इन्हें...<br />
<br />
ये अपररूप हैं प्रेम के.....<br />
<br />
इन्होंने मृत्यु को जीत लिया है!!!<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-65539663020499203932014-02-24T09:43:00.002+05:302014-02-24T09:45:23.015+05:30तुम्हारा आना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
सफेद झूठ होगा मेरा यह कहना कि <br />
तुम्हारे आने से पहले<br />
दिन खाली-खाली थे और रातें सूनी;<br />
यह कहना कि<br />
तुम्हें जानकर हीं मैंने जाना हैं ज़िंदगी को,<br />
कि तुम आई<br />
तभी धड़कनें उपजीं, साँसें कौंधीं, रगों में रक्त बह निकला...<br />
<br />
मेरे शब्द गिर पड़ेंगे<br />
कौड़ियों की तरह,<br />
अगर मैं बोल दूँ कि<br />
तुमने हीं हाड़-माँस में फूँके हैं प्राण...<br />
<br />
यादों पर पड़े पदचिन्ह गवाही देंगे<br />
कि मैं तुम्हें रख रहा हूँ धोखे में..<br />
<br />
तुम कभी न कभी गुजरे नक्षत्रों को उतारोगी हथेली पर<br />
और किस्मत की लकीरों पर दौड़ पड़ोगी उलटे पाँव..<br />
<br />
टकराओगी सच से<br />
और पिघल जाएगा मेरे सच का मोल..<br />
<br />
इसलिए खुद कहता हूँ-<br />
तुम्हारे आने से पहले भी<br />
ज़िंदा था मैं,<br />
जान चुका था ज़िंदगी के उतार-चढाव..<br />
<br />
ज़िंदा था मैं,<br />
लेकिन सुलगती साँसों की आंच पर चढे काठ की हांडी के मानिंद..<br />
मेरे दिन लबरेज थे चंद तारों से<br />
और रातों में जलन थी दावानल की;<br />
दर-ओ-दीवार नाखूनों की छीलन से नुचे-खुचे थे<br />
और सीने में बसते थे......... बस ज्वार-भाटे<br />
<br />
तुमने प्राण नहीं फूँके,<br />
बल्कि पेट के बल सरकते मेरे अस्तित्व में<br />
जड़ दी है रीढ...<br />
प्रेम की रीढ..<br />
<br />
शून्य से ऊपर खींच ले जाना अगर प्रेम है<br />
तो अनंत तक धंस चुके मेरे ख्वाबों को तुम्हारा अवलंब<br />
क्या कहा जाएगा-<br />
युग निर्धारित करे!!!<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-86071822423396915142013-09-08T18:14:00.000+05:302013-09-08T18:17:56.985+05:30तो तुम भी कौन से तोपची हो?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
भाई,<br />
मानता हूँ कि<br />
मैं कुछ नहीं करता..<br />
<br />
तो तुम भी कौन से तोपची हो?<br />
<br />
सपनों में बंकर के बंकर बुनते हो<br />
और शब्दों में मोर्टार दागते हो उनपे..<br />
<br />
ज़रा-सी कलम हिल जो जाती है<br />
तो कांप उठते हो..<br />
<br />
चिल्लाते हो ... भूकंप,<br />
पुकारते हो.... प्रभु,<br />
करते हो... त्राहिमाम<br />
<br />
हद है,<br />
कैसे ढूँढते हो आश्रय<br />
उस कलंकित सत्ता में,<br />
जो फुंफकारती है जड़ों में सांप्रदायिकता की...<br />
<br />
ख़ैर..<br />
तुम्हारी दुनिया में<br />
परमज्ञानी हो तुम<br />
और इसीलिए<br />
बुद्धिजीवियों के मानिंद<br />
महज कहते हो........ करते नहीं कुछ..<br />
<br />
हाँ भईया,<br />
मैं भी कुछ नहीं करता;<br />
नकारे हैं दोनों के दोनों...<br />
<br />
फिर कैसे श्रेष्ठ है तुम्हारी बुद्धि<br />
हम निरे गंवारों से..<br />
<br />
तुम भी तमाशबीन, <br />
हम भी तमाशबीन..<br />
<br />
हाँ मगर हम लाचार है,<br />
तुम नहीं..<br />
<br />
समझे!!<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-17120375121369010462013-09-06T09:55:00.000+05:302013-09-06T09:56:56.099+05:30सब हैं चुप शब की तरह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
तमाशबीनों का शहर है..<br />
सब हैं चुप शब की तरह..<br />
<br />
बुझ रहा है हर दीया,<br />
हर मोड़ पर अंधियारे की<br />
आस्तीन लाल है,<br />
लाश सूरज की लिए<br />
हर सहर हीं बेहाल है...<br />
<br />
तमाशबीनों का शहर है,<br />
सब हैं चुप शब की तरह..<br />
<br />
और<br />
हम भी तुर्रम खां कहाँ!!<br />
(हम भी बस बकते हीं हैं)<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-28256217.post-19346712114525065312013-08-04T17:40:00.000+05:302013-08-04T17:40:54.992+05:30देह नया है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: 120%;"> <br />
वही धूप,<br />
वही परछाई..<br />
देह नया है... लेकिन अब<br />
<br />
वही उम्र,<br />
ज़रा अलसाई..<br />
नेह नया है... लेकिन अब<br />
<br />
लफ़्ज़ वही हैं,<br />
वही हैं मानी,<br />
सोए पड़े थे<br />
ये अभिमानी..<br />
<br />
अब जाग गए हैं... सब के सब..<br />
<br />
देह नया है... देखो अब<br />
<br />
- <a data-hovercard="/ajax/hovercard/page.php?id=111079325580343" href="https://www.facebook.com/vishwa.deepak.singh" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vishwa Deepak Lyricist</a></span></div><div class="blogger-post-footer">आत्मा के सौन्दर्य का शब्द-रूप है काव्य,
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!
-श्री गोपाल दास ’नीरज’ जी</div>विश्व दीपकhttp://www.blogger.com/profile/10276082553907088514noreply@blogger.com0