Sunday, May 18, 2014

और आ गए प्रभु जी


प्रभु जी आएँगे,
चाशनी में गुड़ की रोटी डुबाएँगे,
गोद में बैठाकर हमको खिलाएँगे,
दिन तर जाएँगे ।

सदियों से आँखों में सपना था जिनका,
झटके से आँखों में उतरेगा तिनका,
मांझी बन तिनके को पार वो लगाएँगे,
काॅर्निया से रेटिना तक धंसते वो जाएँगे,
सच कर दिखाएँगे ।

देश क्या विदेश में भी धाक होगी उनकी,
लाल कृष्ण झुकेंगे, हालत यही "मुन" की,
चुटकी में देश से वो दुर्दिन मिटाएँगे,
हफ्ते में दुनिया के अव्वल हो जाएँगे,
दुश्मन थरथराएँगे ।

भगीरथ के डैडी हैं, माँ ने बुलाया है,
उनके सिवा जो भी है वो छलावा है,
सिंहासन है उनका, वही आ संभालेंगे,
राज कैसे करते हैं, आकर दिखाएँगे,
इतिहास बनाएँगे ।

हाथ हमने जोड़ा है,
बस एक भरोसा है,
प्रभु जी आएँगे,
दिन तर जाएँगे ।

- Vishwa Deepak Lyricist

6 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अपना अपना नज़रिया - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

SKT said...

वे देश के क्या परदेस के अव्वल हो जाएँ!
तिनके को क्या लट्ठे को पार लगाएँ
प्रभु बन जाएँ!
आप कवि धर्म निभाएँ!
और हमें क्या चाहिए?

दिगम्बर नासवा said...

ये तो समय बतायगा ... दिन तरेंगे या ...

विश्व दीपक said...

हमारे कवि धर्म में दिक्कते हैं तो बता दीजिए :)

(क्या हमें अपना पक्ष रखने की भी मनाही है?)

SKT said...

मेरा मतलब था कि आप ऐसे ही लिखते रहें, कविता सुनाते रहें! आपने पता नहीं क्या समझा!!

विश्व दीपक said...

हेहे... सहीं में ’गलत’ समझ गया था। माफ़ी :)