Thursday, November 08, 2012

झुर्रियाँ


मुखौटा ओढकर हँसता रहता हूँ दिन भर..

रात को मुखौटा उतारता हूँ तो
छिली होती है झुर्रियाँ...

उम्र आँसू की आदी हो गई है शायद...

अब सुबह तक रोऊँगा तभी चेहरे का फर्श पक्का होगा,
जान आएगी सीमेंट में...

इतना तो अनुभव है;
मैं अनुभव से बोलता हूँ!!!!!

- Vishwa Deepak Lyricist

1 comment:

Ravindra Joglekar said...

मुखोटा ओढना किस मज़बूरी की और इशारा करता हैं

और क्या ये परस्थितियों के समक्ष हथियार डालने जैसा नहीं हैं ?

दर्द के बयां करते हुए दवा की और इशारा तो है पर अस्पष्ट