Sunday, September 23, 2012

रिसते रिश्ते


कमाल का है पैरहन दुनिया की ज़ात का,
उधड़े कि या साबूत हो - उरियाँ हीं है रखे...

रिश्तों के जो रेशे हैं रिसते हैं हर घड़ी...

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हत्थे से हीं उखड़ गई वो जड़ ये जान के
कि फूल-पत्तियों ने खुद को उससे लाज़िमी कहा...

तुम गए तो साथ मेरी मिट्टी भी तो ले गए..

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पत्थर या नमक दे जाती है,
हर लहर जो मुझ तक आती है...

मैं रेत के साहिल जैसा हूँ...

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राह में तेरी रखी होंगीं ये आँखें उम्र भर,
जब उतर आओ अनाओं से बता देना इन्हें...

सात जन्मों का समय है, कोई भी जल्दी नही...

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मुझे एक टीस ने ज़िंदा रखा है,
तुम्हें एक टीस से मरना पड़ा था...

मिटा दूँ टीस तो मर जाऊँ मैं भी...

- Vishwa Deepak Lyricist

8 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

रिश्ते के रेशों का रिसना ,मिट्टी का भी साथ ले जाना ,साहिल सा होना ,इंतज़ार की इंतिहां ,बिना तीस के ज़िंदा रहना भी नामुमकिन .... सभी त्रिवेणी गजब की लिखी हैं ॥

विश्व दीपक said...

बेहद शुक्रिया संगीता जी... उत्साहवर्द्धन बनाए रखिएगा :)

Vandana Ramasingh said...

सभी शानदार

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 27-09 -2012 को यहाँ भी है

.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....मिला हर बार तू हो कर किसी का .

shikha varshney said...

राह में तेरी रखी होंगीं ये आँखें उम्र भर,
जब उतर आओ अनाओं से बता देना इन्हें...

सात जन्मों का समय है, कोई भी जल्दी नही...

गज़ब...क्या बात है..सभी त्रिवेनियाँ भाईं.

Kailash Sharma said...

लाज़वाब...

विश्व दीपक said...

आप सभी का शुक्रिया इस प्रोत्साहन के लिए...

Kuhoo said...

सात जन्मों का समय है, कोई भी जल्दी नही...

VD bhai aap kamaal kar dete ho yaar! sabhi triveni oomda...ye waali mere dil ko sabse jyada chhui!