Saturday, September 08, 2012

मैं जम्हूरियत का बागी हूँ


ना चमड़ी है जो खून जने,
ना दमड़ी हीं जो सिंदुर दे..

ले भटकोइयां और मांग सजा...

*भटकोइयां = खर-पतवार श्रेणी का एक पौधा जिसपे "मटर-दाने" की तरह के फूल उगते है और जिन्हें फोड़ने पर लाल रंग निकलता है

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वो काटता है जब माटी को,
माटी-सा कटता जाता है...

सोना सोता है संसद में..

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गदगद हैं पूँछ उगाकर सब,
जो कल तक मुझ-से इंसां थे..

मैं जम्हूरियत का बागी हूँ...

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तालीम जहां की ऐसी है,
हर शख्स करैला नीम-चढा..

चुप्पी भी ज़हर उगलती है..

- Vishwa Deepak Lyricist

2 comments:

Vandana Ramasingh said...

तालीम जहां की ऐसी है,
हर शख्स करैला नीम-चढा..

चुप्पी भी ज़हर उगलती है..

बढ़िया रचनाएं

विश्व दीपक said...

जी शुक्रिया..