Wednesday, September 19, 2012

गिद्ध घरों पे बैठे तो


पत्थर या नमक दे जाती है,
हर लहर जो मुझ तक आती है...

मैं रेत के साहिल जैसा हूँ...

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वह उड़ते-उड़ते बैठ गया मेरी आँखों में,
तब से हीं मेरी आँखों में कोई ख्वाब नहीं...

गिद्ध घरों पे बैठे तो मौत का आलम होता है..

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इश्क़ की बेरूखियों को रखता आया पन्नों पे,
सर पटक के आज हर्फ़ों ने किया है आत्मदाह..

मैं जलूँ या तुझको सीने से निकालूँ, तू हीं कह..

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सुबह से तुम्हारी यादों की हो रही हैं उल्टियाँ,
एक "हिचकी" की दवा दे जाओ कि चैन आए..

याद कर-करके मुझे मार हीं दो तो बेहतर हो..

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तुम सुधर गए हमें बिगाड़ते-बिगाड़ते,
हम उधड़ गए तुम्हें संवारते-संवारते..

प्यार तो था हीं नहीं, बस नीयतों की जंग थी...

- Vishwa Deepak Lyricist

2 comments:

शारदा अरोरा said...

bahut khoob ..magar yad ki hichkiyon se koi marta nahi ..ulte jindagi sanvar jati ho shayad...

विश्व दीपक said...

जी, मरने की सोच तो मेरी है.. अब वो याद करें तो न पता चलेगा कि मौत सामने है या ज़िंदगी.... शायद मैं गलत साबित हो जाऊँ और जी जाऊँ :)