Thursday, September 06, 2012

जब लिखता था


मैंने लिखना छोड़ दिया है!

साँस चला के रात-रात भर,
आँख जला के रात-रात भर,
बात बढा के बात-बात पर
मैंने टिकना छोड़ दिया है!

वक़्त से किरचे नोच-नोच कर,
ख्वाब के परचे नोच-नोच कर,
हवा में पुलिये सोच-सोच कर,
मैंने बिकना छोड़ दिया है!
मैंने लिखना छोड़ दिया है।

आँख में तेरी डूब-डूब कर,
साँस में तेरी डूब-डूब कर,
प्यास से तेरी खूब-खूब पर
मैंने सपना जोड़ लिया है,
तुझसे लिखना... जोड़ लिया है...

- Vishwa Deepak Lyricist

2 comments:

शारदा अरोरा said...

badhiya ..n likhna ab aapke bas me nahi...writer ki ye majboori jaisi ho jati hai..kalam khud-b-khud hi chalne lagti hai..

विश्व दीपक said...

जी हाँ.. वो तो है :)

लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि आप कलम लेकर बैठे रहो और शब्द उतरते हीं नहीं पन्ने पे :(