Tuesday, August 14, 2012

मैं, तू, खला, खालीपन और मौत


मुझमें ढूँढे तू खालीपन?

मैं तुझसे तुझतक फैला हूँ!

मैं हूँ तो तू खाली कैसे?
तू है तो मैं खाली कैसे?

ना खला कहीं... हरसू हम हैं..

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तुझसे होकर मैं यूँ गुजर जाऊँ,
तेरी बाहों में सोऊँ, मर जाऊँ...

इक सिरा मेरी रूह का
अटका हो मेरे सहरे से
दूसरा सिरा लेके मैं
तेरे साहिलों से उतर जाऊँ..

तेरी बाहों में सोऊँ.. मर जाऊँ..

तू काँटें दे या फूल हीं
या बंद कर ले पंखुड़ी
मैं ओस बनके आज तो
तेरी क्यारियों में बिखर जाऊँ..

तेरी बाहों में सोऊँ.. मर जाऊँ..

- Vishwa Deepak Lyricist

2 comments:

डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन' said...

आत्मीय प्रेम की उत्कृष्ट प्रस्तुति...

विश्व दीपक said...

इस प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद गायत्री जी..