Monday, August 27, 2012

हूँ ज़िंदा या मुर्दा


जो कमबख्त पत्थर थे कल तक मेरे घर,
वो फूलों में तब्दील होने लगे हैं..

इलाही ये क्या माज़रा है बता दो,
बियाबां जो सब झील होने लगे हैं...

हूँ ज़िंदा या मुर्दा कि वो सारे सादिक़
मुखौटों को यूँ छील, होने लगे हैं..

सादिक़ = pure, honest, true

- Vishwa Deepak Lyricist

2 comments:

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... मन भावन शेर हैं सभी ...

विश्व दीपक said...

शुक्रिया दिगम्बर जी..