Wednesday, June 27, 2012

मुझे इस बात पे रोना पड़ा है


मुझे इस बात पे रोना पड़ा है
कि यूँ जज़्बात को ढोना पड़ा है..

जिसे बुनियाद का पत्थर कहा था,
पकड़ के आज वो कोना, पड़ा है..

जो हर एक ख़्वाब में शामिल रहा था,
उसे हर याद में खोना पड़ा है..

दिल-ए-महबूब से कू-ए-हवस तक,
मुझे बदनाम हीं होना पड़ा है..

(ख़ुदा के दैर से काफ़िर-गली तक,
मुझे बदनाम हीं होना पड़ा है..)

जवां उस चाँद के थे सब, मगर अब
उसे भी रात में सोना पड़ा है..
(यहीं फुटपाथ पे सोना पड़ा है..)

- Vishwa Deepak Lyricist

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