Thursday, June 21, 2012

कनगोजर


मुझमें पनपता है गुस्सा हर दिन

और रात तक यह चाह उग आती है
कि इस गुस्से की पूँछ पकड़
खींच लूँ अपनी पेशानी से
और फेंक आऊँ किसी "नामुराद" के कानों में..

यह कनगोजर वहीं का बाशिंदा है,
रह लेगा वहाँ मज़े से..

लेकिन फिर सोचता हूँ कि
यह चाह वापस न ले आए
इस परजीवी को फिर मुझ तक..

यह गुस्सा रहे तो भी आफत,
जाए तो भी आफत...

- Vishwa Deepak Lyricist

1 comment:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पर इतना गुस्सा क्यों ? मन के भावों को कहने का अनूठा अंदाज़