Sunday, January 08, 2012

सात हाईकु

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कदम ताल
ख्वाब से ख्वाब तक
रात सौ फांक

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आकाश गंगा
यादों की खूनी राह
घिसता मन

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दर-ब-दर
धूप के पीले पन्ने
सुबके दिन

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तुम ना आई
बीते छह जन्मों-सी
इस बार भी

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कुदरत है!
सूखे चढें आग पे
कच्चे देवों पे

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ढूँढना तुम
फुरसत के पल
फुरसत से

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बातें दिल की
जबकि सारे जानें
मैं हीं गाफ़िल

- विश्व दीपक

3 comments:

SKT said...

वाह दीपक जी, पूरी फॉर्म मे दिख रहे हो! गज़ब के हाइकू हैं सातों के सातों!!

विश्व दीपक said...

Shukriyaa uncle ji....

कुलदीप "अंजुम" said...

बस एक ही शब्द शानदार ....सभी बहुत खूब !