Wednesday, December 23, 2009

बातें


सिले-सिले से लब पे तेरे सीली-सीली बातें हैं,
धूप जलाके लूट लूँ उनको, ढीली-ढीली बातें हैं।

चाँद चुराके बैठी आँखें,
बंद-बंद हैं जिनकी पाँखें,
पोर-पोर सुरमा है टाँके,
कला-कला हल्के से झाँके,
और-और हाँ उसी ठौर,
गौर-गौर हाँ किए गौर,
होश मेरा चुपके से फ़ाँके।

गर्म-गर्म साँसों में तेरी, गीली-गीली बातें हैं,
रात बुझाके बाँट लूँ उनको, ढीली-ढीली बातें हैं।

मान-मनव्वल-सी ये पलकें,
झुके-उठे नखरे कर ढलके,
घड़ी-घड़ी लफ़्ज़ों में गलके,
बूँद-बूँद अमृत बन छलके,
और-और हाँ उसी ठौर,
गौर-गौर हाँ किए गौर,
चैन मेरा खा जाए तलके।

सर्द-सर्द मौसम में सारी तीली-तीली बातें हैं,
प्यार सजाके वार लूँ खुदपे, ढीली-ढीली बातें हैं।


-विश्व दीपक

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