Monday, February 02, 2009

आसमानी ओस...

आसमानी ओस!
अंबर से बहके,
चले छलके-छलके,
घुले जो,मिले जो,
हवा के तले जो,
करे सबको पुरनम,
मद्धम हीं मद्धम,
तरल यह,सरल यह,
सहनशील-दुस्सह,
यह उजली-सुनहरी,
रजनी की चितेरी,
कुछ लहरे हीं ऎसे,
जो हो राग जैसे-
भैरवी,मालकोंश!
आसमानी ओस!!

आसमानी ओस!
जब हीं है तरसे,
गिरे जो अधर से,
करे एक हीं घर,
वर्तुल लबों पर,
एक सुंदरतम डेरा,
सुकोमल बसेरा,
यह होठों से जुड़ के,
देखे हीं मुड़ के,
पले फिर,फले फिर,
थमे फिर अस्थिर,
ज्यों संवरे उभय हीं,
गले हर हृदय हीं
खोकर सब होश!
आसमानी ओस!!

आसमानी ओस!
है प्रेम की हीं
अमित एक झाँकी,
यदि दूब पे है,
मिट्टी की मय है,
यदि पत्तों पे है,
लगे किसलय है,
रहे तुंग शिख पे,
अमर-दूत बनके,
सजे धूप में यों,
कनक-कण जले ज्यों,
पर वैभव यह पाये,
जो तुझपे ढल जाये-
हो पावन,निर्दोष!
आसमानी ओस!!

-विश्व दीपक ’तन्हा’